श्रवण कीर्तन स्मरण ही है ,प्रमुख साधन प्यारे।
स्मरण ही को साधना का, प्राण मानो प्यारे।।
सकल दुख का मूल है इक, हरि विमुखता प्यारे।
हरिहि सन्मुखता है याकी, एक औषधि प्यारे।।
स्मरण ही को साधना का, प्राण मानो प्यारे।।
सकल दुख का मूल है इक, हरि विमुखता प्यारे।
हरिहि सन्मुखता है याकी, एक औषधि प्यारे।।
स्मरणयुक्त नित रोके माँगो,प्रेम हरि का प्यारे।
उनके सुख को मानु निज सुख लक्ष्य यह रखु प्यारे।।
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।
उनके सुख को मानु निज सुख लक्ष्य यह रखु प्यारे।।
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।
No comments:
Post a Comment