मैया मोहिं, दै दै माखन रोटी।
पग पटकत झगरत झकझोरत, कर गहि यशुमति चोटी।
‘आँ, आँ, करत मथनियाँ पकरत, जात धरणि पर लोटी।
लै निज गोद मातु दुलरावति, कहति ‘बात यह खोटी’|
बिनु मुख धोये हौं नहिं दैहौं, नवनी रोटी मोटी।
खाय ‘कृपालु’ धोइहौं मुख कह, हरि पीतांबर ओटी।।
पग पटकत झगरत झकझोरत, कर गहि यशुमति चोटी।
‘आँ, आँ, करत मथनियाँ पकरत, जात धरणि पर लोटी।
लै निज गोद मातु दुलरावति, कहति ‘बात यह खोटी’|
बिनु मुख धोये हौं नहिं दैहौं, नवनी रोटी मोटी।
खाय ‘कृपालु’ धोइहौं मुख कह, हरि पीतांबर ओटी।।
भावार्थ:– छोटे से कन्हैया अपनी मैया से मक्खन रोटी माँग रहे हैं। अपना पैर पटकते जाते हैं एवं यशोदा मैया की चोटी को हाथ से पकड़ कर पीठ की ओर से झकझोरते हुए वात्सल्य प्रेमयुक्त झगड़ा कर रहे हैं। बाल स्वभावानुसार आँ आँ करते हुए मथानी पकड़ लेते हैं। इतने पर भी जब मैया नहीं सुनती तो मान करते हुए पृथ्वी पर लोट जाते हैं। यह देखकर मैया बालकृष्ण को अपनी गोद में लेकर दुलार करती हुई प्यार से शिक्षा देती है कि पृथ्वी पर लोटना बुरी बात है। फिर मैया कहती है पहले मुँह धो आओ तब मक्खन रोटी दूँगी। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि श्यामसुन्दर भोरेपन में पीताम्बर की ओट से मैया को यह उत्तर देते हैं कि प्रतिदिन की भाँति मक्खन रोटी खाकर मुँह धो लूँगा।
(प्रेम रस मदिरा:-श्री कृष्ण–बाल लीला–माधुरी)
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज।
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।
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