सहनशीलता बढ़ानी है। किसी के भी निंदनीय शब्द से अथवा व्यवहार से मन में अशांति न हो । बस यही साधना एवं दीनता है। किसी की निरर्थक बात को न सुनना है, न सोचना है। यदि कोई दुराग्रह करके या अन्य कुसंग द्वारा अपना पतन करना ही चाहता है तो भगवान और महापुरुष क्या कर सकते हैं। घोर संसारासक्त लोगों से सदा सर्वदा अपने को दूर रखने का प्रयत्न करो। भक्तों का संग करो। कुसंग से बचो।
#जगदगुरूत्तम_श्री_कृपालु_जी_महाराज।
#जगदगुरूत्तम_श्री_कृपालु_जी_महाराज।
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