तुम जीव हो, तुम्हारा भगवान् है,वही रिश्तेदार है, सदा साथ रहता है और संसार के रिश्तेदार सदा साथ नहीं रहते और जितनी देर साथ रहते हैं, स्वार्थ को लेकर।
इस पॉइंट को नोट करो। जितनी देर हमारे रिश्ते को निभाते हैं,
कब तक?जब तक स्वार्थ सिद्धि हो।
और भगवान्?
उनको हमसे कोई स्वार्थ हो ही नहीं सकता।क्योंकि वो परिपूर्ण है,आत्माराम पूर्णकाम, परम निष्काम, उनके भक्त हो जाते हैं, उनकी कौन कहे।
तो, वो ऐसे रिश्तेदार हैं,जो हमारे हित के लिये ही सब कुछ करते हैं,
उनका अपना कुछ कर्म है ही नहीं।
इस पॉइंट को नोट करो। जितनी देर हमारे रिश्ते को निभाते हैं,
कब तक?जब तक स्वार्थ सिद्धि हो।
और भगवान्?
उनको हमसे कोई स्वार्थ हो ही नहीं सकता।क्योंकि वो परिपूर्ण है,आत्माराम पूर्णकाम, परम निष्काम, उनके भक्त हो जाते हैं, उनकी कौन कहे।
तो, वो ऐसे रिश्तेदार हैं,जो हमारे हित के लिये ही सब कुछ करते हैं,
उनका अपना कुछ कर्म है ही नहीं।
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