गुरु सेवा ही धर्म हमारो, दास न हम श्रुतिचारी के।।
गुरु की सेवा ही हमारा धर्म है । हम चार वेद के दास नहीं है । हम उनको नमस्कार करते हैं । तिरस्कार न करना । वेद भगवान् का स्वरुप है, लेकिन वो हमारे बस का नहीं है, हम तैरकर के गंगा को नहीं पार कर सकते इसलिये हमने दस रुपया देकर नाव कर लिया है । नाव में बैठ कर चले जायेंगे ठाठ से 'राधे राधे' करते हुये ... गुरु सँभालेगा । हम केवल शरणागत रहें ।
--------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।
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