Tuesday, December 25, 2018

हमारो, कान्ह प्रान को प्रान।
आजु सखी! हौं करन गई रहि, यमुना महँ असनान।
तहँ दुर्वासा मरम बतायो, दै वेदादि प्रमान।
मुनि इमि कह इंद्रिय मन बुधि कहँ, जिमि प्रिय प्रान बखान।
तिमि इन प्रानन प्रान जान उन, सुंदर श्याम सुजान।
कह ‘कृपालु’ तबही सखि! लागत, प्रानन प्यारो कान्ह||
भावार्थ:– हमारे श्यामसुन्दर आत्मा की भी आत्मा हैं। अरी सखी! आज मैं यमुना–स्नान करने गयी थी, वहाँ दुर्वासा मुनि ने वेदादिकों के प्रमाण द्वारा यह रहस्य बताया। उन्होंने कहा जिस प्रकार इन्द्रिय, मन, बुद्धि को प्राण अर्थात् आत्मा, अपने से भी अधिक प्रिय है, उसी प्रकार आत्मा को भी, आत्मा की आत्मा–परमात्मा अर्थात श्यामसुंदर अधिक प्रिय हैं। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं–अरि सखी! इसी कारण से श्यामसुन्दर प्राणों से भी अधिक प्यारे लगते हैं। यह रहस्य आज समझी।
(प्रेम रस मदिरा:-श्रीकृष्ण–माधुरी)
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।
अलबेली मम सरकार , जो महाभाव साकार।
जेहि सेवत नंदकुमार , जेहि महिमा अपरंपार ।।
तनु दिव्य गौर सरकार , बह रोम रोम रस धार ।
रस पियत सबै ब्रजनार , जेहि छवि लखि छवि बलिहार।।
सब जग भज नंदकुमार , सोइ भज स्वामिनी सुकुमार ।
पग चापत जेहि रिझवार , सोइ मम 'कृपालु' सरकार ।।
सहनशीलता बढ़ानी है। किसी के भी निंदनीय शब्द से अथवा व्यवहार से मन में अशांति न हो । बस यही साधना एवं दीनता है। किसी की निरर्थक बात को न सुनना है, न सोचना है। यदि कोई दुराग्रह करके या अन्य कुसंग द्वारा अपना पतन करना ही चाहता है तो भगवान और महापुरुष क्या कर सकते हैं। घोर संसारासक्त लोगों से सदा सर्वदा अपने को दूर रखने का प्रयत्न करो। भक्तों का संग करो। कुसंग से बचो।
#जगदगुरूत्तम_श्री_कृपालु_जी_महाराज

Realise the importance of the human birth and do not waste it in merely eating, drinking and making merry. This human body is inaccessible even to celestial gods. Having attained this precious birth, if we still fail to attain our ultimate aim in life, we will later regret our foolishness, because there is no other form of life in which we will be able to do anything towards the attainment of our ultimate goal. It is necessary therefore to think about what we are looking for in life.
#JAGADGURU_SHRI_KRIPALUJI_MAHARAJ.
Shri Maharaj Ji has the most brilliant intellect and wisdom in India. He has set up a group of devotees who are following bhaktiyoga in all its glories. His strong sense of upholding and strengthening the dharma has been growing day by day, along with his fame and glory. He deserves the highest accolade. The highest title of Jagadguruttam is being conferred on him . . . "
Excerpt from Padyaprasunopahara, originally written in Hindi by:
Kashi Vidvat Parishat
14 January 1957
Kashi

Wednesday, December 19, 2018

अगर किसी ने एक वाक्य बोल करके आपके दिमाग में टेंशन पैदा कर दिया तो वो जीत गया , आप हार गये , बेवकूफ बन गये । एक सेन्टेन्स(sentence) ने बेवकूफ बना दिया आपको और अमूल्य निधि जो इस समय आपके पास थी - श्रीकृष्ण का , गुरु का चिन्तन कर रहे थे , उसने छीन लिया और घोर गन्दगी में आपके अन्तः करण को डुबो दिया इसलिए द्वेष नहीं करना है किसी से । वहाँ पर ये समझना है ये भगवान् की परीक्षा है । वो ही बैठे - बैठे गुरु घण्टाल ये सब करा रहे हैैं लेकिन मैं पीछे हटने वाला नहीं हूँ , जितना चाहे उतना कर ले ।
#पुस्तक:- #नारद_भक्ति_दर्शन
पृष्ठ संख्या :- १६५ एवं १६६
निष्कामता का अभिप्राय 'माँगना नहीं है कुछ चाहे प्राण निकल रहे हों।'
#जगदगुरूत्तम_श्री_कृपालु_जी_महाराज

#भगवान् #सर्वव्यापक होते हुए भी अभी तक क्यों नहीं मिले ?
#श्री_महाराज_जी द्वारा उत्तर:- तुमने चाहा नहीं ! चाहने में अनेक स्तर हैं । ऐसा चाहो कि उसके पाये बिना रहा न जाय। उससे मिले बिना एक क्षण युग के समान लगे। जैसे - जैसे#व्याकुलता बढ़ेगी तुम #भगवान् के पास पहुँचते जाओगे । व्याकुलता ही #श्याम_मिलन का आधार है। अपने को अधम पतित मान कर मनुहार करो और आँसू बहाकर भगवान् के#निष्काम_प्रेम कि ,#याचना करो । #संसार न माँगो। तब भगवान् #महापुरुष के द्वार अपना#दिव्य #स्वरूप दिखायेंगे।
We do not make good use of our spare time and that causes negative feelings of despair to set in. The best remedy for this problem is to not let your mind remain idle. Whatever you do, wherever you are, engage your mind in loving remembrance of your Guru and God.
#SHRI_MAHARAJJI.
आपकी जितनी #आयु #शेष है, यदि उसका एक-एक #श्वास आपने #भगवान् काे साैंप दिया ताे सारे पाप-तापों से #मुक्त हाेकर आप इसी #जन्म में भगवान काे पाकर #अनन्त #जीवनकी #साध पूरी कर सकते हैं। आशा है,आप मेरी #प्रार्थना पर #ध्यान देंगे।
कौन हरि! हमरो तुम्हरो नात।
तुम सोवत निज लोक चैन ते, हम रोवत दिन रात।
हम पल छिन तुम बिन नित तलफत, तुम नहिं पूछत बात।
नैन निगोरे बरजत मोरे, और और अकुलात।
रोम रोम नित याचत मोते, सुंदर श्यामल गात।
जानि ‘कृपालु’ कृपालु तोहिं हौं, प्रीति करी पछितात।|
भावार्थ:-हे श्यामसुन्दर! हमारा-तुम्हारा नाता ही क्या समझा जाय, जबकि तुम अपने गोलोक में चैन से सो रहे हो और हम तुम्हारे लिए निरन्तर रो रहे हैं। हम सदा एक-एक क्षण तुम्हारे मधुर-मिलन के लिए तड़पते रहते हैं फिर भी तुम बात नहीं पूछते। इन हठीले नेत्रों को मैं जितना अधिक समझाता हूँ उतने ही यह और व्याकुल होते हैं। कहाँ तक कहें, प्रत्येक रोम-रोम मुझ से सलोने श्यामसुन्दर को माँगता है। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि मैंने तुम से, कृपा करने वाला समझकर, प्रेम किया था, किन्तु अब तुम्हारी निष्ठुरता को देखकर मन ही मन पछता रहा हूँ।
(प्रेम रस मदिरा:-दैन्य–माधुरी)
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।

#मनुष्य दूसरों को #सुधारने के लिये उनके #दोष देखता है और #आलोचना करता है, #परिणाम यह होता है कि दूसरों के #दोषों का #सुधार तो होता नहीं, दोषों का लगातार #चिन्तन करने से वे दोष #संस्कार #रूप से उसके अपने #अन्दर #घर कर लेते हैं, इससे पहले के रहे दोषों की #पुष्टि होती है, उन्हें #बल मिल जाता है। फिर अपने दोषों का दिखना #बन्द हो जाता है, बल्कि कहीं कहीं तो उसमें #अहंकार #बुद्धि हो जाती है, जिससे #पतनका #पथ #प्रशस्त हो जाता है।
जब मनुष्य दूसरे को सुधारने के लिए उसके दोष देखता है, तब #स्वाभाविक ही वह मानता है कि मुझ में दोष नहीं है, #गुण हैं। इससे #गुणों का #अभिमान बढ जाता है। और दोष बढते रहते हैं। जहां अपने दोष #देखने की #आदत छूटी कि फिर उसका #जीवन ही #दोषमय बन जाता है ।
कोई हो #पापात्मा हो, #पुण्यात्मा हो,स्त्री हो, पुरुष हो, नपुंसक हो,जो भी मुझसे #प्यार कर ले। कुछ भी मान के प्यार कर ले। फिर कोई #कर्म करे,उसको #पाप #पुण्य छू नहीं सकता।और #अर्जुन!अगर कोई ये सोचे कि मैंने तो #शास्त्र-#वेद पढ़ा नहीं, नहीं तो मैं जल्दी #भगवत्प्राप्ति कर लेता।
अरे—नाहं वेदैर्न तपसा न दानेन न चेज्यया।
मैं #वेदाध्ययन वगैरह से,पण्डिताई से नहीं मिलता। उससे तो और दूर हो जाता हूँ।क्योंकि उसमें #अहंकार हो जाता है।
भक्त्या त्वनन्यया शक्य अहमेवंविधोऽर्जुन।
(११-५३, ११-५४)
केवल #भक्ति से मिलता हूँ।