संसार
में जब कोई भूत से आविष्ट हो जाता है, कोई आत्मा किसी आत्मा पर हावी हो
जाती है, जिसको आप लोग कहते हैं कोई भूत लगा है, कोई प्रेत लगा है, तो
जितनी देर तक वो भूत रहता है, वही वर्क करता है।
महापुरुषों को भी महाभूत लग जाता है, वो नन्दपूत।
तो वही करता है सब काम, फिर महापुरुष कुछ नहीं करता। भगवत्प्राप्ति के बाद नन्दपूत का भूत महापुरुषों के ऊपर हावी हो जाता है। और महापुरुष को कहता है, तुम चुप बैठो, मैं सब कुछ करूँगा:- ‘तस्य कार्यं न विद्यते’।
यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः।
आत्मन्येवात्मनः तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते॥
(३-१७, गीता)
नैव चास्ति किंचित्कर्तव्यमस्ति चेत् न स तत्त्ववित्
(१-२३, जाबालदर्शनोपनिषत्)
अगर कुछ करता है वो महापुरुष, तो महापुरुष नहीं है। महापुरुष का मतलब कृतकृत्य। कृत कृत्य:- करना कर चुका। कृतार्थ, वो जो कुछ पाना था, पा चुका।
अब कुछ भी क्यों करे? हम क्यों करते हैं कोई भी कर्म?
कुछ पाना है, ‘आनन्द’। जो पा चुका, वो कुछ क्यों करे?
अगर करे, तो क्वेश्चन होगा।
लेकिन हर महापुरुष करता है और भगवान् भी करता है।
अरे! भगवान् को क्या पाना है?
न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन।
अर्जुन! मुझे कुछ पाना नहीं है, लेकिन देख,
मैं भी सब कर्म करता हूँ—
उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम्।
(३-२२, ३-२४, गीता)
तो, ये भगवान् और महापुरुष जो कर्म करते हैं,
वह अपने लिये नहीं करते। हम सब जीवों के लिये करते हैं।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
महापुरुषों को भी महाभूत लग जाता है, वो नन्दपूत।
तो वही करता है सब काम, फिर महापुरुष कुछ नहीं करता। भगवत्प्राप्ति के बाद नन्दपूत का भूत महापुरुषों के ऊपर हावी हो जाता है। और महापुरुष को कहता है, तुम चुप बैठो, मैं सब कुछ करूँगा:- ‘तस्य कार्यं न विद्यते’।
यस्त्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः।
आत्मन्येवात्मनः तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते॥
(३-१७, गीता)
नैव चास्ति किंचित्कर्तव्यमस्ति चेत् न स तत्त्ववित्
(१-२३, जाबालदर्शनोपनिषत्)
अगर कुछ करता है वो महापुरुष, तो महापुरुष नहीं है। महापुरुष का मतलब कृतकृत्य। कृत कृत्य:- करना कर चुका। कृतार्थ, वो जो कुछ पाना था, पा चुका।
अब कुछ भी क्यों करे? हम क्यों करते हैं कोई भी कर्म?
कुछ पाना है, ‘आनन्द’। जो पा चुका, वो कुछ क्यों करे?
अगर करे, तो क्वेश्चन होगा।
लेकिन हर महापुरुष करता है और भगवान् भी करता है।
अरे! भगवान् को क्या पाना है?
न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किंचन।
अर्जुन! मुझे कुछ पाना नहीं है, लेकिन देख,
मैं भी सब कर्म करता हूँ—
उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम्।
(३-२२, ३-२४, गीता)
तो, ये भगवान् और महापुरुष जो कर्म करते हैं,
वह अपने लिये नहीं करते। हम सब जीवों के लिये करते हैं।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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