हे
प्राणेश्वर ! कुंजबिहारी श्रीकृष्ण ! तुम ही मेरे जीवन सर्वस्व हो ।
हमारा–तुम्हारा यह सम्बन्ध सदा से है एवं सदा रहेगा (अज्ञानतावश मैं इस
सम्बन्ध को भूल गयी)।तुम चाहे मेरा आलिंगन करके मुझे अपने गले से लगाते
हुए, मेरी अनादि काल की इच्छा पूर्ण करो, चाहे उदासीन बनकर मुझे तड़पाते
रहो, चाहे पैरों से ठोकर मार-मारकर मेरा सर्वथा परित्याग कर दो। प्राणेश्वर
! तुम्हें जिस-जिस प्रकार से भी सुख मिले, वही करो मैं तुम्हारी हर इच्छा
में प्रसन्न रहूंगी । ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि निष्काम प्रेम का
स्वरूप ही यही है कि अपनी इच्छाओं को न देखते हुए, प्रियतम की प्रसन्नता
में ही प्रसन्न रहा जाय । अपने स्वार्थ के लिए प्रियतम से बदला पाने की
भावना से प्रेम करना व्यवहार जगत का नाटकीय व्यापार सा ही है।
--- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
--- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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