अरे
मन ! इस संसार का समस्त व्यवहार झूठा है। जब तक किसी के पास तन, मन, धन
एवं सहायकजन रहते हैं तब तक उसे सब संसार पूछता है किन्तु जब इनका अभाव
देखता है तब अपना परिवार भी उसे छोड़ देता है। जब तक किसी से स्वार्थ सिद्ध
होता रहता है तब तक उससे हजारों नाते जोड़ता है किन्तु जैसे ही अपना काम
बनते नहीं देखता वैसे ही वह मित्र भी अपनी मित्रता छोड़ देता है। ‘श्री
कृपालु जी’ कहते हैं कि अरे मन ! इसलिए तू संसार से किसी प्रकार की आशा न
रखते हुए प्रतिक्षण श्यामसुन्दर का भजन कर।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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