सतयुग
वगैरह में हजारों योगी हुए और जब माया को नहीं पार कर सके, तो श्रीकृष्ण
की भक्ति करने आये,तो उनके शरणागत होकर,उनसे माया की निवृत्ति की भिक्षा
माँगे, क्योंकि—
तपस्विनो दानपरा यशस्विनो मनस्विनो मंत्रविदः सुमङ्गलाः।
क्षेमं न विन्दन्ति विना यदर्पणं तस्मै सुभद्रश्रवसे नमो नमः॥
(२-४-१७, भागवत)
कितना ही बड़ा तपस्वी हो,योगी हो, ज्ञानी हो, कर्मी हो,अगर श्रीकृष्ण की भक्ति नहीं करता,तो पतन अवश्य होगा,माया धर दबोचेगी उसको, बच नहीं सकता कोई।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
तपस्विनो दानपरा यशस्विनो मनस्विनो मंत्रविदः सुमङ्गलाः।
क्षेमं न विन्दन्ति विना यदर्पणं तस्मै सुभद्रश्रवसे नमो नमः॥
(२-४-१७, भागवत)
कितना ही बड़ा तपस्वी हो,योगी हो, ज्ञानी हो, कर्मी हो,अगर श्रीकृष्ण की भक्ति नहीं करता,तो पतन अवश्य होगा,माया धर दबोचेगी उसको, बच नहीं सकता कोई।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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