गलती
न मानने का सबसे बड़ा कारण यह है कि लोग अपने को बुद्धिमान कहलाना चाहते
हैं । किसी को अगर कोई मूर्ख कहे , यह किसी को बर्दाश्त नहीं होता । अगर
कोई विवेकपूर्वक सोचे तो सब अल्पज्ञ ही तो हैं । सब लोगों के पास जो बुद्धि
है वह काम चलाऊ ही तो है । गुरु ने भी दोष बताया तो उलटा सोचने लगा । यह
प्रमुख गलती है । चाहिये तो शिष्य को यह कि अगर कोई दोष बताया जाय तो
निरन्तर उसका चिन्तन करे और भविष्य में वह न होने पाये । कोशिश करने पर
अवश्य ही दोष कम होते हैं , लेकिन कोशिश कम होती है अतः दोष भी कम ठीक होते
हैं। बराबर वाले और बड़ों से व्यवहार करते समय अपनी वाणी पर कन्ट्रोल रखें ,
जवाब न दें । गुरु के प्रति तो यही सोचना काफी है कि गलती तो हमारी ही
होगी ।
----जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
----जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
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