भगवत्प्राप्ति
का एक ही मूल्य है, गुरु-शरणागति | हम गुरु के प्रति शरणागत क्यों नहीं
होते, क्योंकि हमारे मन में है कि अरे सारी रात भर कीर्तन है, गुरुजी ने
आज्ञा दी और सोने चले गये तो सोचा कि गुरुजी तो अब सोने चले गये, चलो, हम
भी सोने चले जाते हैं, गुरु जी को क्या मालूम पड़ेगा सुबह जल्दी वापस आ
जायेंगे | यही मक्कारी ही हम लोगों का पतन कराती है | यही कारण है कि हम कई
बार आगे बढ़ते-बढ़ते फिर गिर जाते हैं |
.............जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
.............जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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