हरि सुत कहँ हरिदासी , जड़ माया दुख देत।
बड़ अचरज पितु लखत नित , तबहुं न सुत सुधि लेत।।८६।।
भावार्थ - मायाशक्ति , शक्तिमान भगवान् श्रीकृष्ण की दासी है। जीव , श्रीकृष्ण का पुत्र है। मायादासी जीव पुत्र को अनादिकाल से दुख दे रही है। यह दृश्य पिता सदा देखता रहता है। फिर भी पुत्र पर कृपा नहीं करता।
बड़ अचरज पितु लखत नित , तबहुं न सुत सुधि लेत।।८६।।
भावार्थ - मायाशक्ति , शक्तिमान भगवान् श्रीकृष्ण की दासी है। जीव , श्रीकृष्ण का पुत्र है। मायादासी जीव पुत्र को अनादिकाल से दुख दे रही है। यह दृश्य पिता सदा देखता रहता है। फिर भी पुत्र पर कृपा नहीं करता।
भक्ति शतक (दोहा - 86)
-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
(सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति)
-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
(सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति)
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