अपनी
भावना के अनुसार ही हम भगवान और संत को देखते हैं और उसी भावना के अनुसार
फल मिलता है। एक भगवतप्राप्ति कर लेता है और एक नामापराध कमा के लौट आता
है। और पाप कमा लेता है भगवान के पास जाकर, संत के पास जाकर 'ये तो ऐसा
लगता है, मेरा ख्याल है कि'.......ये अपना ख्याल लगाता है वहाँ। अरे पहले
दो-दो पैसे के स्वार्थ साधने वाले, झूठ बोलने वाले, अपने माँ, बाप ,बीबी को
तो समझ नहीं सके तुम और संत और भगवान को समझने..... जा रहे हो। कहाँ जा
रहे हो। हैसियत क्या है तुम्हारी, बुद्धि तो मायिक है। एक
ए,बी,सी,डी.......पढ़ने वाला बच्चा प्रोफेसर की परीक्षा ले रहा है कि में
देखूंगा प्रोफेसर कितना काबिल है। अरे क्या देखेगा तू तो ए,बी,सी........भी
नहीं जानता। अपनी नॉलेज को पहले देख। अपनी योग्यता को पहले देख। तो इसलिए
जिसकी जैसी भावना होती है वैसा ही फल अवतार काल में भी मिलता है अधिक नहीं
मिलता।
--------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
--------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
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