आवृत्ति रसकृदुपदेशात...................
बार-बार सुनो,बार-बार सुनो, तब तत्त्वज्ञान परिपक्व होगा। ये जो हम लोगों को भ्रम होता है कि यह तो मैंने बहुत सुना है, ये तो मैं जानता हूँ। यह बहुत बड़ी भूल है। बार-बार सुनो। इससे दो लाभ हैं। बार-बार सुनने से तत्त्वज्ञान परिपक्व होगा ही दूसरे जिस समय हम उपदेश सुनते हैं, उस समय हमारी चित्तवृत्ति जिस प्रकार की होती है, उसी प्रकार से हम उपदेश ग्रहण करते हैं। अगर उस समय हमारी श्रद्धा 50 प्रतिशत है तो 50 प्रतिशत लाभ होगा, 60 है तो 60, यदि श्रद्धा 80 प्रतिशत है तो 80 प्रतिशत लाभ होगा और श्रद्धा अगर सेंट-परसेंट(cent-percent) है तो उसी समय ही हमारा काम बन जायेगा।
-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
बार-बार सुनो,बार-बार सुनो, तब तत्त्वज्ञान परिपक्व होगा। ये जो हम लोगों को भ्रम होता है कि यह तो मैंने बहुत सुना है, ये तो मैं जानता हूँ। यह बहुत बड़ी भूल है। बार-बार सुनो। इससे दो लाभ हैं। बार-बार सुनने से तत्त्वज्ञान परिपक्व होगा ही दूसरे जिस समय हम उपदेश सुनते हैं, उस समय हमारी चित्तवृत्ति जिस प्रकार की होती है, उसी प्रकार से हम उपदेश ग्रहण करते हैं। अगर उस समय हमारी श्रद्धा 50 प्रतिशत है तो 50 प्रतिशत लाभ होगा, 60 है तो 60, यदि श्रद्धा 80 प्रतिशत है तो 80 प्रतिशत लाभ होगा और श्रद्धा अगर सेंट-परसेंट(cent-percent) है तो उसी समय ही हमारा काम बन जायेगा।
-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।