Tuesday, November 29, 2011



अरे मन ! अस तृष्णा बलवान |
बड़े बड़े भूपति भये भूतल, उदय अस्त लौं भान |
तिनहुँन की सोइ दशा रही जो, एक भिखारिहिं जान |
यह तृष्णा नहिं छोड़ति इंद्रहुँ, जेहि सुरपति सब मान |
जब लौ नहिं सुमिरहु मन निशिदिन, सुंदर श्याम सुजान |
... तब लौ सुख ‘कृपालु’ नहिं पैहौं, वेद पुरान प्रमान ||

भावार्थ- अरे मन ! यह तृष्णा इतनी बलवती है कि इस पृथ्वी पर बड़े-बड़े राजा हुए जिनका सम्पूर्ण धरातल पर राज्य था किंतु उनकी दशा भी ठीक एक भिखारी के समान थी | कहाँ तक कहें यह तृष्णा देवराज इन्द्र को भी नहीं छोड़ती जिसे सब देवताओं का स्वामी मानते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं, हे मन ! वेद पुराण चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं कि जब तक तू श्यामसुन्दर का निरन्तर स्मरण नहीं करेगा तब तक सुख न पा सकेगा |

(प्रेम रस मदिरा सिद्धान्त-माधुरी)
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति.

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