Sunday, November 27, 2011

जो आँसू स्वयं गुरु आकर न पोंछे, तब तक उन्हें झूठे आँसू मानो।
-----श्री महाराजजी।



सब लोग दीनता, कम बोलने का अभ्यास करो, सहनशीलता बढ़ाने का अभ्यास करो। यही मेरी खुशी है।
------श्री महाराजजी।



दीनता का दूसरा नाम ही साधना है।
-----श्री महाराजजी।



जहाँ प्यार किया जाता है,वहाँ व्यवहार नहीं देखा जाता।
------श्री महाराजजी।





अपनी बुराई सुनकर सौभाग्य मानकर विभोर हो जाओ कि यह हमारा हितैषी है, क्योंकि हमारे दोषों को देखकर बता रहा है,अत: उन बुराइयों को निकालो।
-----श्री महाराजजी।

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