Thursday, November 10, 2011


सुनो हरि अधम उधारन हार |
तुम्हरे सब चाकर हैं नागर, गुन आगर सरकार |
पै इक निगुनी बिनु नहिं शोभा, होति गुनिन दरबार |
ज्यों न होत मायिक दुख तो तोहिं, को पूछत संसार |
त्यों न होय जो मो सम निगुनी, हो न गुनिन सत्कार |
... जानत जग ‘कृपालु’ है तुम्हरो, अपनो जानि निहार ||

भावार्थ- हे अधमों को अपनाने वाले श्यामसुन्दर ! एक प्रार्थना हमारी भी सुन लो | हे नाथ ! तुम्हारे समस्त दास समस्त गुणों के भण्डार एवं रसिक हैं | लेकिन किसी भी दरबार में बिना एक गुणहीन व्यक्ति के गुणी लोगों की शोभा नहीं है | जिस प्रकार यदि संसार में मायिक दु:ख न होता तो आनन्दस्वरूप तुम को कौन पूछता ? उसी प्रकार मुझ सरीखे अवगुण के भण्डार यदि तुम्हारे दरबार में न होंगे तो सर्वगुणसंपन्न तुम्हारे समस्त भक्तों का सम्मान क्या रह जायगा ? ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं – हे श्यामसुन्दर ! भ्रमवश सारा संसार मुझे तुम्हारा भक्त जानता है, तुम भी एक बार अपना जानकर मेरी ओर देख लो |

(प्रेम रस मदिरा दैन्य-माधुरी)
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति.

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