Thursday, November 24, 2011

कहीं भी गलत जगह एटेचमेंट(attachment) हुआ कि शरणागति समाप्त हुई अत: गुरु रूपी भगवान को ही सब कुछ मानो।
------श्री महाराजजी।


श्री कृपालु जी महाराज के मुखारविंद से:-

जो आदेश मैंने तुमको दिया है: दीनता, मधुरभाषण, नम्रता , उनका पालन तुम लोग अभी नहीं कर रहे हो। एक भिक्षा माँग रहा हूँ, तुम लोग लापरवाही कर रहे हो, यह बुरी बात है।



इष्टदेव और गुरु में अभेद मानो। उनकी सेवा ही को अपना सर्वस्व मानो, उनकी इच्छा में ही इच्छा रखो।
-------श्री महाराजजी।


भगवदप्राप्ति महापुरुष के बताये मार्ग पर चलने से होगी, न की उनकी नकल करने से।
-----श्री महाराजजी।






कुसंग से बचने का एक ही रास्ता है, सदा हरि-गुरु को अपने हृदय में, अपने साथ ही महसूस करो।
--------श्री महाराजजी।

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