अब
देखो यहाँ चार-पाँच सौ आदमी आये हैं | अब अगर एक आदमी सोचे- हमसे तो बात
ही नहीं किया | भई कोई संसारी व्यवहार हो कि चलो एक-एक आदमी को नम्बर-वार
बुलाओ और एक-एक आदमी से बात करो, ऐसा तो नहीं | और जिससे बात करेंगे उससे
अधिक प्यार है, ये सोचना गलत है | मेरी गोद में कोई बैठा रहे 24 घण्टे इससे
कुछ नहीं होगा | उसका मन जितनी देर मेरे पास रहेगा बस उसको हम नोट करते
हैं | खुले आम सही बात करते हैं | बदनाम हैं सारे विश्व में हम स्पष्ट
व्यक्तित्व में साफ-साफ | आप ये ना सोचें कि हम बहिरंग अधिक
सम्पर्क पा करके और बड़े भाग्यशाली हो गए | और एक को बहिरंग सम्पर्क न
मिला, उससे बात तक नहीं किया मैंने तो उसका कोई मूल्य नहीं है हमारे हृदय
में | ये सब कुछ नहीं | कुछ लोगों की आदत होती है बहुत बोलने की | वो जैसे
ही लैक्चर से उतरेंगे सीधे हमारे पास आएंगे और बकर-बकर बोलते जाएंगे | कुछ
लोग अपना हृदय में ही भाव रखते हैं, दूर से ही अपना आगे बढ़ते जाते हैं |
मैं तो केवल हृदय को देखता हूँ | मुझे इन बहिरंग बातों से कोई मतलब नहीं है
| और कभी बहिरंग बातों के धोखे में आना भी मत | इतना कानून याद रखना- “ये
यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम” | जितनी मात्रा में हमारा सरेण्डर
होगा, हमारी शरणागति होगी उतनी मात्रा में ही उधर से फल मिलेगा |
.........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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