यह
समझे रहना है की हमारे प्रेमास्पद श्री कृष्ण सर्वत्र है एवं सर्वदा है
।विश्व में एक परमाणु भी ऐसा नहीं है, जहाँ उनका निवास न हो। जैसे तिल में
तेल व्याप्त होता है ऐसे ही भगवान भी सर्वव्यापक है। उनको कोई भी स्थान या
काल अपवित्र नहीं कर सकता।वरन वे ही अपवित्र को पवित्र कर देते है।
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