"हे
श्यामसुंदर! संसार में भटकते भटकते थक गया। हे करुणा वरूनालय! तुमने अकारण
करुणा के परिणाम स्वरूप मानव देह दिया ,गुरु के द्वारा तत्वज्ञान कराया कि
किसी तरह तुम्हारे सन्मुख हो जाऊँ तथा अनंत दिव्यानन्द प्राप्त करके सदा
सदा के लिए मेरी दुख निव्रत्ति हो जाये लेकिन यह मन इतना हठी है कि
तुम्हारे शरणागत नहीं होता।"
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