हे
श्यामसुन्दर ! संसार में भटकते - भटकते थक गया। हे करुणा वरुणालय ! तुमने
अकारण करुणा के परिणामस्वरूप मानव देह दिया , गुरु के द्वारा तत्वज्ञान
कराया कि किसी तरह तुम्हारे सम्मुख हो जाऊँ तथा अनन्त दिव्यानन्द प्राप्त
करके सदा-सदा के लिए मेरी दुःख निवृति हो जाए लेकिन यह मन इतना हठी है कि
तुम्हरे शरणागत नहीं होता।
--------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
--------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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