Wednesday, September 11, 2013

Remember The LORD Every Moment...........
Don't look at my fallen condition, O Radhey! Just think about your greatness and have mercy on me.
------SHRI MAHARAJJI.
ShyamSundar's heart is extremely tender. The one who knows this secret, never leaves Him.
माया ने भुलाया अरु गोविंद राधे।
गुरु ने जगाया ये भिखारी उन्हें का दे।।

भावार्थ: माया ने जीव को अपना स्वरूप- मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ,भुला दिया था। वह अपने को शरीर मान कर शरीर के नातेदारों में ही आसक्ति कर बैठा। गुरु ने उसे इस मोह तंद्रा से जगा कर उसे याद दिलाया कि तुम शरीर नहीं आत्मा हो अतः तुम्हारा संबंध केवल परमात्मा से ही है। इस उपकार के बदले शरीर के सुख साधन की भौतिक सम्पत्ति का भिक्षुक अपने गुरु को क्या दे सकता है?
God takes complete responsibility of those who are exclusively surrendered to Him.
......SHRI MAHARAJJI.
प्रेम को परखना तो बड़ी मेहनत का काम है, लेकिन फिर भी असंभव नहीं अगर कोई स्वार्थ रहित हो जाये तो। जब कि असंभव है वह भी। लेकिन ईश्वरीय प्यार में तो अकल लगाने की जरूरत ही नहीं है कि उनका हमसे कितना प्यार है। जितनी मात्रा में हमारा है उतनी मात्रा में उनको हमसे है यह सिद्ध है।
------श्री कृपालुजी महाप्रभु।
साधक को बड़ी सावधानी से सद्गुरु के आदेश का सदा पालन करना चाहिए।
गुरु आदेश -पालन से ही श्यामा श्याम की प्राप्ति होगी।
........श्री महाराज जी।
अनुकूल चिंतन: उपासना ,प्रतिकूल चिंतन: नामापराध...........सदा याद रखो।

........श्री महाराजजी।
हमारे ह्रदय में श्याम सुंदर हैं , इस फीलिंग ( feeling ) को बढ़ाना है , अभ्यास करो इसका ! कभी भी अपने आपको अकेला न मानो बस एक सिद्धांत याद कर लो ! हम लोग जो पाप करते हैं , क्यों करते हैं ? अकेला मानकर अपने आपको ! हम जो सोच रहे हैं , कोई नहीं जनता ! हम जो करने जा रहे हैं कोई नहीं जनता ! हम जो झूठ बोल रहे हैं , कोई नहीं जान सकता।

........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
SIR,O SIR! WE LOVE YOU.

HAPPY TEACHER'S DAY TO ALL OF YOU.RADHEY RADHEY.
Constantly engross yourself in remembrance of God, so that this remembrance remains even at the time of death.
भगवान् का निरन्तर स्मरण करना चाहिये, जिससे मृत्यु के समय भी उनका स्मरण बना रहे।
.......SHRI MAHARAJ JI.
तू प्यार का सागर है, तेरी एक बूँद के प्यासे हम।
Learn to control your anger even if someone commits a mistake.
कोई गलती करेगा तो क्रोध सबको आता है। उसपर कन्ट्रोल करना सीखे।

........SHRI MAHARAJ JI.
सब धामन वारो वृन्दावन पै, औ वृन्दावन हूँ गुरुधाम पै वारो।

जो गुरु के पद प्रीति जुरी तो, भज्यों चलि आवेगो ब्रह्म बिचारो।

हैं हरि निर्मल भक्तन को, गुरु हैं अधमों को उधारन हारो।

औरन को गुरु हों या न हों, गुरु मेरो 'कृपालु' सुभाग हमारो।।
भगवान् केवल भाव नोट करते हैं , क्रिया नहीं।
.....श्री महाराज जी।
The path of devotion is free from all conditions of time, place, rituals and manners etc. All that is required is to love Shri Krishna selflessly with a simple heart.

........SHRI MAHARAJ JI.
"हे श्यामसुंदर! संसार में भटकते भटकते थक गया। हे करुणा वरूनालय! तुमने अकारण करुणा के परिणाम स्वरूप मानव देह दिया ,गुरु के द्वारा तत्वज्ञान कराया कि किसी तरह तुम्हारे सन्मुख हो जाऊँ तथा अनंत दिव्यानन्द प्राप्त करके सदा सदा के लिए मेरी दुख निव्रत्ति हो जाये लेकिन यह मन इतना हठी है कि तुम्हारे शरणागत नहीं होता।"
Going to temple or Satsang and simultaneously not making efforts to remove the material attachment is sheer hypocrisy. By doing this, we are do not deceiving Hari and Guru (as they know everything), but we actually cheat ourselves and plunge into the ocean of karmic bondage for long time... So let's be sincere in Sadhna Bhakti.
The goal of attaining God can only be reached by surrendering to a genuine Spiritual Master.
किसी भी स्थान में यदि कुसंग प्राप्त होता है तो उस स्थान का तत्काल त्याग कर देना चाहिये।

---------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
मन का भगवान के पास जाना ही उपासना है।

........श्री महाराजजी।
ऐसा करके दिखा दो कि एक भी शिकायत न मिले ।
उससे खुशी के मारे हमारा एक किलो खून बढ जायेगा।
नुकसान तुम लोगो का होता है और ममता से दुःख हमे होता है ।
इतनी सारी भगवत्क्रपायें तुम लोगों पर हैं ।
अब और क्या कृपा चाहते हो ?

---------------श्री महाराज जी।
जरा सोचो यह जीवन क्षणभंगुर है। अत: यदि कल का दिन ना मिला तो इतनी बड़ी गुरु-कृपा, भगवतकृपा, सौभाग्य सब व्यर्थ हो जायेगा। बार-बार सोचो, बार-बार सोचो।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
Both from the point of view of experiencing the highest and sweetest nectar of divine love, and because of the ease provided in the practice of devotion, meditating upon Lord Krishna is most appropriate. He is infinitely beautiful and charming being the ocean of nectarine bliss, the stealer of the hearts of surrendered souls, the Crest Jewel of the Rasiks and the Darling of Braj.
............JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
WHEN A SOUL DESPERATELY CRIES FOR 'RADHARANI', SHE RUNS TO HIM WITHOUT EVEN CARING FOR HERSELF.WHEN A SOUL LOVINGLY CALLS 'RADHEY! 'RADHEY!' RADHARANI ALSO SHEDS TEARS OF LOVE FOR HIM.THE DEVOTEE FURTHER SAYS,"WHEN RADHA RANI HERSELF IS MY DIVINE GUARDIAN,WHY SHOULD I BE AFRAID OF ANYTHING IN THE WORLD."
-----JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.
Once we understand that it is in our self-interest to get happiness by seeking God and not the world, we will be able to remove the expectation of happiness from the world and focus on our devotional practice to reach Shree Krishna.
--------- SHRI MAHARAJJI.
क्रोध की शुरुआत , लोभ की शुरुआत ,ईर्ष्या की शुरुआत हो, वहीँ पर सावधान हो जाओ - हमे भगवान् की, गुरु की कृपा चाहिए ।वह हमारे साथ हैं, और देख रहे है हम क्या कर रहे हैं ।तो कृपा कैसे मिलेगी ?ये सब सावधान रहने का अभ्यास करना चाहिए और रात को सोते समय सोचे - आज हमने कहाँ - कहाँ क्रोध किया, कहाँ - कहाँ लोभ किया, कहाँ कहाँ किसको दुःख दिया, उसको फील करो। दूसरे दिन फिर वो और कम हो, फिर और कम हो फिर ख़त्म हो जाए।
.........श्री महाराजजी।
सौंप दो इनके हाथों में डोरी, यह 'कृपालु' हैं तंग दिल नहीं हैं |

Hand over the string of your life in His hands. After all, He is ‘Kripalu’ (merciful), not a miser.
जब निष्काम भाव से जीव हरि - गुरु की भक्ति करता है तब दयालु गुरु उस जीव को श्यामा श्याम का दिव्य प्रेम दान करते हैं.

--------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज.
आप लोग शायद नहीं जानते आपके ह्रदय में भगवान् नित्य रहते हैं , लेकिन कोई फायदा नहीं ! सुनते हैं रहते हैं , रहते हैं अब आइडियाज (ideas) नोट करते हैं ! हाँ मानते नहीं ! अगर मान लें तो पाप कैसे करें ?अगर मान लें कि वो हमारे ह्रदय में हैं तो हम प्राइवेसी (privacy) जो रखते हैं अपनी , अपनी बीबी के खिलाफ सोच रहे हैं उसके बगल में बैठ कर , आपने ही बाप के खिलाफ सोच रहे हैं उसके ही पास में बैठ कर , अपने ही गुरु के खिलाफ भी सोचने लगते हैं , उन्ही के सामने बैठ कर के ! और तो और भगवान् को भी नहीं छोड़ते ! ये क्या भगवान् भगवान् भगवान् लगा रखा था ! उसके नौ बच्चे थे दसवाँ हुआ है आज ! हमारे एक बच्चा था मर गया ! क्या भगवान् का न्याय है तुम्हारे ! इसमें भगवान् क्या करें भाई ? ये तो तुम्हारे कर्म के हिसाब से फल मिलता है ! लेकिन अल्पज्ञ जीव अपनी अल्पज्ञता का स्वरूप दिखा देता है।

..........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
"Always keep your mind absorbed in Radha Krishn and your beloved Spiritual Master."
सच्चा साधक ------

1- द्वेष करने वाले व्यक्ति के प्रति भी द्वेष न करें ! उदासीन रहें !

2- आज कोई नास्तिक भी है , तो कल उच्च साधक बन सकता है ! अतः साधक यह न सोचे कि इसका पतन सदा के लिए हो चुका ! सूरदास आदि संत उदाहरण हैं !

3 - गुरु की सेवा करने वाला तो साधक ही है , उसके प्रिय होने के कारण उससे द्वेष करना पाप है !

4 - सचमुच भी कोई अपराधी हो तो भी मन से भी उसके भूतपूर्व अपराधों को न सोचें , न बोलें !

5 - संसार में भगवत्प्राप्ति के पूर्व सभी अपराधी हैं ! बड़े - बड़े साधकों का भी पतन एवं बड़े - बड़े पापियों का भी उत्थान एक क्षण में हो सकता है !

6 - सब में श्री कृष्ण का निवास है , अतः उनको ही महसूस करें !

**********जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ***********
कमर कस कर जिद कर लो कि मुझे अपने प्राणवल्लभ श्रीकृष्ण से मिलना ही है ! इसी जन्म में ही , नहीं - नहीं इसी वर्ष , नहीं - नहीं आज ही मिलना है ! यह व्याकुलता बढ़ाना ही वास्तविक साधना है ! इस प्रकार यह व्याकुलता इतनी बढ़ जाय कि अपने प्रियतम के बिना एक क्षण भी युग के सामान बीतने लगे , बस यही साधना की चरम सीमा है ! इसी सीमा पर भगवत्कृपा , गुरु कृपा द्वारा दिव्य प्रेम मिलेगा !

..............जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु .
There is no one in this world who attains worldly possessions and is not intoxicated.
..........SHRI MAHARAJJI.
"Meditation in raganuga bhakti is not a physical disciplinary act of concentration in the brain area. Meditation means feeling the Divine presence of Radha Krishn or your Spiritual Master near you."
Maya is not an illusion or false notion. It is a power of God.
.........SHRI MAHARAJJI.
गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

हे! गणेश गणपति लंबोदर........ कृष्ण प्रेम पाऊँ दे दो यह वर...........अति कृपालु तुम गौरीनन्दन...... ,अस वर दो दें राधा दर्शन........जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा.......माता तो हैं पार्वती पिता महादेवा..........जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा........यह वर दे दो पाऊँ नित्य श्याम सेवा........जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा.........यह वर दे दो पाऊँ हरि-गुरु सेवा.........

...........श्री महाराजजी।
If your mind is remembering Radha-Krishn and Guru all the time then it cannot be affected by any kind of stress or turmoil in any situation. The fact that we experience stress is an indication that we have forgotten God and that is why Maya could adversely affect our mind and cause stress. We HAVE to remember to practice Roop Dhyan constantly while doing anything.
.........SHRI MAHARAJJI.
हे राधा गोविन्द..........
यदि संतो का संग मुझे नरक में प्राप्त हो तो मुझे नरक ही दे देना परन्तु कुसंग से युक्त स्वर्ग सम्राट इन्द्र का पद भी मुझे मत देना !

--------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
सबते बड़ा है प्रेम गोविंद राधे ! ब्रह्मा को भी जीव खिलौना बना दे !!
सबते बड़ा है प्रेम गोविंद राधे !पुरुषोतम को भी दास बना दे !!
सबते बड़ा है प्रेम गोविंद राधे ! ब्रह्म को भी जीव सांटी डरा दे !!
सबते बड़ा है प्रेम गोविंद राधे !बड़े ब्रह्म प्रेम को छोटा बना दे !!
सबते बड़ा है प्रेम गोविंद राधे ! सब ते बड़े ब्रह्म को भी रुला दे !!
सबते बड़ा है प्रेम गोविंद राधे ! ब्रह्म को भी जीव करताल पै नचा दे !!
सबते बड़ा है प्रेम गोविंद राधे ! ब्रह्म पूर्णकाम को सकाम बना दे !!
सबते बड़ा है प्रेम गोविंद राधे ! पूर्णब्रह्म को भी अपूर्ण बना दे !!
सबते बड़ा है प्रेम गोविंद राधे ! ब्रह्म को भी छाछ भिखारी बना दे !!
सबते बड़ा है प्रेम गोविंद राधे !गोपियों के पाछे पाछे ब्रज में घुमा दे !!
{राधा गोविंद गीत }
........जगद्गुरू श्री कृपालु जी महाराज.
साधक को किसी से द्वेष भाव नहीं रखना चाहिये ! यदि हो जाये तो बार - बार उसका चिंतन न करे ! यदि है भी तो कथन में उसके सामने प्रकट न करे ! संसार में सब स्वार्थी हैं अतः इस विषय को लेकर किसी से द्वेष होना गलत है !
.........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज.
भक्तिमार्गावलंबी को सर्वप्रथम उपर्युक्त 3 शर्तों को पूरा करना होगा ------
1 . त्रण से बढ़कर दीन भाव रहे।
2 . वृक्ष से बढ़कर सहिष्णु भाव रहे।
3 . सबको सम्मान दे , स्वयं सम्मान न चाहे।

.........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु.
To develop an intense desire for God-realisation, strengthen your decision that the world is not yours and cannot give you perfect happiness.

........SHRI MAHARAJ JI.
Shyama Shyam nam rupa leela guna dhama,
Gao roke rupadhyana yukta athon yama.

Sing the glories of Shyama Shyam’s (Radha Krishna’s) divine names, forms, qualities pastimes and abodes. Shed tears of longing for Them with your mind absorbed in Their loving remembrance.
-------SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
गुरु द्वारा ही श्री हरि के स्वरूप का सच्चा तत्व - ज्ञान प्राप्त होता है ! गुरु के अभाव में तो संसार में क , ख , ग , घ का ज्ञान भी असम्भव है !

........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज.
सिद्ध भक्तों के आचरण का अनुकरण साधक भक्त को नहीं करना चाहिये अन्यथा उसका पतन हो जायेगा !
........श्री महाराज जी।
हमारो धन राधा.....श्री राधा....श्री राधा.......
परम धन राधा ..........श्री राधा........श्री राधा।।
Preparatory devotion leads to perfect devotion through divine grace.

.......SHRI MAHARAJ JI.
सबसे बड़ा पाप कहा गया है दूसरे को दु:खी करना !

"It is the greatest sin to hurt anyone through your words or actions."

.....SHRI MAHARAJ JI.
जीव की अनेकों बार भगवान् व उनके भक्तों से भेंट हो चुकी है परन्तु उनके प्रति संशयात्मक बुद्धि के कारण उसे कभी इसका फल नहीं मिला !

......श्री महाराज जी .