केवल
भगवान् की भक्तिकरो । और साथ में 'गुरुदेवतात्मा' गुरु को अपना इष्टदेव
मानो,भगवान् के बराबर मानो , अपनी आत्मा मानो । शरणागत हो जाओ । जैसी भक्ति
भगवान् में हो वैसी गुरु में हो । और कहीं न हो मन का अटैचमेन्ट (
attachment ) बस ये दावा है , इससे सन्मुख हो जाओ और सन्मुख हो जाओगे तो बस
बिगड़ी बन जायेगी । तब तुम्हारा ये कहना सही होगा कि - किशोरी मोरी ,
बिगरी देहु बनाय ।
********जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी*********
********जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी*********
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