Monday, August 19, 2013

हरि एवं गुरु (श्री महाराजजी ही) 'ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही'(रट लो 'ही') हमारे हैं।शेष सब शरीर चलाने हेतु स्वार्थयुक्त हैं।ऐसा निश्चय बार-बार करते हुए बुद्धि में दृढ़ता लानी है।

************राधे-राधे************

No comments:

Post a Comment