""जिस
जीव का अंत:करण जितना पापयुक्त होगा, उसको उतनी ही मात्रा में संत के
प्रति अश्रद्धा होगी। वो हर जगह बुद्धि लगायेगा और तर्क, वितर्क, कुतर्क,
अतितर्क, संशय करेगा। जितना अधिक पाप होगा अंदर, उतना ही हम दूर जाते
जाएंगे महापुरुष और भगवान से।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज.""
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