श्यामसुंदर तुमसे मिलने को व्याकुल हैं......किन्तु तुम यह नहीं जानते थे।
अब यदि जान भी गए हो तो............................ ...मानना नहीं चाहते।
तुमने संसार में अकारण करुणा का व्यवहार कहीं नहीं देखा है........शायद इसीलिए अप्रतीती होती है।
यदि तुम यह मान लो की.........वे आज और अभी ही तुमसे मिलने को व्याकुल
हैं, तो बस तुम्हारे ह्रदय में भी उनके जैसी ही व्याकुलता उत्पन्न हो जाये
और बस ...वे मिल जायेंगे।
वो तुम्हारे झूठ मूठे रूप ध्यान , नाम , गुण आदि को भी तन्मयता से सुनते और देखते हैं...की शायद अब की बार ठीक से करेगा।
पर होता क्या है...? वो परखते ही रह जाते हैं.......और तुम उनके अहैतुकी स्नेह को न समझने के कारण ठीक ठीक नहीं कर पाते।
इसलिए तुम उपरोक्त बात को मान लो ...जिस समय तुम मेरी बात पर विश्वास कर लोगे...बस यही स्वर्ण मुहूर्त होगा तुम्हारा।
----- तुम्हारा कृपालु।
श्यामसुंदर तुमसे मिलने को व्याकुल हैं......किन्तु तुम यह नहीं जानते थे।
अब यदि जान भी गए हो तो............................ ...मानना नहीं चाहते।
तुमने संसार में अकारण करुणा का व्यवहार कहीं नहीं देखा है........शायद इसीलिए अप्रतीती होती है।
यदि तुम यह मान लो की.........वे आज और अभी ही तुमसे मिलने को व्याकुल हैं, तो बस तुम्हारे ह्रदय में भी उनके जैसी ही व्याकुलता उत्पन्न हो जाये और बस ...वे मिल जायेंगे।
वो तुम्हारे झूठ मूठे रूप ध्यान , नाम , गुण आदि को भी तन्मयता से सुनते और देखते हैं...की शायद अब की बार ठीक से करेगा।
पर होता क्या है...? वो परखते ही रह जाते हैं.......और तुम उनके अहैतुकी स्नेह को न समझने के कारण ठीक ठीक नहीं कर पाते।
इसलिए तुम उपरोक्त बात को मान लो ...जिस समय तुम मेरी बात पर विश्वास कर लोगे...बस यही स्वर्ण मुहूर्त होगा तुम्हारा।
----- तुम्हारा कृपालु।
अब यदि जान भी गए हो तो............................
तुमने संसार में अकारण करुणा का व्यवहार कहीं नहीं देखा है........शायद इसीलिए अप्रतीती होती है।
यदि तुम यह मान लो की.........वे आज और अभी ही तुमसे मिलने को व्याकुल हैं, तो बस तुम्हारे ह्रदय में भी उनके जैसी ही व्याकुलता उत्पन्न हो जाये और बस ...वे मिल जायेंगे।
वो तुम्हारे झूठ मूठे रूप ध्यान , नाम , गुण आदि को भी तन्मयता से सुनते और देखते हैं...की शायद अब की बार ठीक से करेगा।
पर होता क्या है...? वो परखते ही रह जाते हैं.......और तुम उनके अहैतुकी स्नेह को न समझने के कारण ठीक ठीक नहीं कर पाते।
इसलिए तुम उपरोक्त बात को मान लो ...जिस समय तुम मेरी बात पर विश्वास कर लोगे...बस यही स्वर्ण मुहूर्त होगा तुम्हारा।
----- तुम्हारा कृपालु।
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