हमारे श्री महाराजजी के सत्संग में कोई दंभी, तन-मन-धन,प्रतिष्ठा ,गुण,ज्ञान आदि का अहंकार रखने वाला टिक नहीं सकता क्योंकि यहाँ तो प्रत्येक को उसकी सही स्थिति व हैसियत का बराबर एहसास कराया जाता है। इसलिए यहाँ दंभी प्रवेश तो पा जाता है किन्तु टिक नहीं पाता। जब वह दीनता की और अग्रसर होता है तब जाकर यहाँ टिक सकता है। हमारे गुरुदेव को दीन एवं भोले लोग ही अत्यंत प्रिय हैं। कोई कितना ही बड़ा intelligent समझता हो अपने आप को यहाँ श्री महाराजजी के सत्संग में आने के बाद उसको अपना ये खुद को intelligent समझने वाला स्वरूप श्री महाराजजी के निर्दिष्ट साधना सहयोग,एवं कृपा से छिन जाता है,या यूं कहूँ छीन लिया जाता है बरबस। वह जीव दीन-हीन बनने का प्रयास करने लगता है और संसार से वैराग्य स्वत: ही बढ्ने लगता है।जितना-जितना उस जीव का संसार श्री महाराजजी की कृपा से छिनता है,उतना ही वो भगवद क्षेत्र में मालामाल होने लगता है। वो अंदर से परम आनंदित महसूस करने लगता है। चिंताओ का शमन अपने आप गुरुदेव कर देते हैं।वो इसलिए सांसारिकता की दृष्टि से देखा जाये तो यहाँ सत्संग में साधारण जीव ही रह जाते हैं। अहंकार रहता भी है जीव में तो अपने गुरु का अहंकार रहता है बस ,उसको सेवा करने की power अंदर ही अंदर गुरुदेव द्वारा मिलती रहती है,वो महसूस करता है कि एक दिव्य शक्ति सदा उनके साथ उनको आगे बढ़ा रही है,एक एक जीव सौ-सौ लोगों के बराबर बिना थके हुए सेवा कर लेता है।
अहंकार से सख्त परहेज़ है गुरुदेव को.....संसार में तो परम चालाक बनने का उपदेश वो समझाते ही हैं,लेकिन उनके यहाँ चालाकी का काम नहीं। अंदर से दीन-हीन को वे संभालते ही संभालते हैं।किसी को यहाँ सेवा में आने पर पोस्ट का अहंकार हो जाता है,तो उसको भी एक क्षण में गुरुवर उसकी असली स्थिति से परिचय करवा देते हैं।हमारे यहाँ कोई पोस्ट है ही नहीं।अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं है,सब एक साथ दर्शन,एक साथ सत्संग बैठ कर करते हैं,यहाँ तो गरीब-अमीर अंदर की अवस्था पर निर्भर है,भगवद-प्रेम में सेवा में वो भी निष्काम सेवा में कौन-कौन कितना गरीब अमीर है,उसका निर्णय होता है।जो थोड़ा भी श्री गुरुदेव के बताये मार्ग पर चलने की कोशिश कर रहे हैं ईमानदारी से वे अंदर से बहुत कुछ पा चुके हैं,और जो यहाँ भी किसी संसारी स्वार्थवश हैं,वे बेचारे तो अंदर से और गरीब हो गए हैं।
बहुत कुछ है श्री महाराजजी के विषय में लिखने को.......कहाँ तक कहा जाये,कहाँ तक लिखा जाये......कोई अंत ही नहीं। फिर भी आप सभी जिज्ञासुओं की सेवा की कोशिश जारी रहेगी।
अहंकार से सख्त परहेज़ है गुरुदेव को.....संसार में तो परम चालाक बनने का उपदेश वो समझाते ही हैं,लेकिन उनके यहाँ चालाकी का काम नहीं। अंदर से दीन-हीन को वे संभालते ही संभालते हैं।किसी को यहाँ सेवा में आने पर पोस्ट का अहंकार हो जाता है,तो उसको भी एक क्षण में गुरुवर उसकी असली स्थिति से परिचय करवा देते हैं।हमारे यहाँ कोई पोस्ट है ही नहीं।अमीर-गरीब का कोई भेद नहीं है,सब एक साथ दर्शन,एक साथ सत्संग बैठ कर करते हैं,यहाँ तो गरीब-अमीर अंदर की अवस्था पर निर्भर है,भगवद-प्रेम में सेवा में वो भी निष्काम सेवा में कौन-कौन कितना गरीब अमीर है,उसका निर्णय होता है।जो थोड़ा भी श्री गुरुदेव के बताये मार्ग पर चलने की कोशिश कर रहे हैं ईमानदारी से वे अंदर से बहुत कुछ पा चुके हैं,और जो यहाँ भी किसी संसारी स्वार्थवश हैं,वे बेचारे तो अंदर से और गरीब हो गए हैं।
बहुत कुछ है श्री महाराजजी के विषय में लिखने को.......कहाँ तक कहा जाये,कहाँ तक लिखा जाये......कोई अंत ही नहीं। फिर भी आप सभी जिज्ञासुओं की सेवा की कोशिश जारी रहेगी।
जय श्री राधे।
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