ऊधो!, वे सब जानन हार।
हौं उतनो जानति नहिं जितनो, जानत नंदकुमार।
हम जानति वे अंतर्यामी, सगुण ब्रह्म साकार।
करन विश्व कल्याण नंद घर, प्रकट्यो लै अवतार।
उनके चरित विचित्र न जानत, विधि हरि हर अनुहार।
हम ‘कृपालु’ व्यवधान करें किमि, उन आचरन मझार।।
हौं उतनो जानति नहिं जितनो, जानत नंदकुमार।
हम जानति वे अंतर्यामी, सगुण ब्रह्म साकार।
करन विश्व कल्याण नंद घर, प्रकट्यो लै अवतार।
उनके चरित विचित्र न जानत, विधि हरि हर अनुहार।
हम ‘कृपालु’ व्यवधान करें किमि, उन आचरन मझार।।
भावार्थ:– ब्रजांगनाएँ उद्धव के द्वारा श्यामसुन्दर को संदेशा भेजती हुई कहती हैं कि हे उद्धव! वे सब कुछ जानते हैं। जितना वे जानते हैं उतना हम लोग नहीं जानतीं। हम इतना अवश्य जानती हैं कि वे सर्वान्तर्यामी सगुण साकार भगवान् हैं एवं विश्व–कल्याण के लिए नंद के घर में अवतार लेकर प्रकट हुए हैं। उनकी लीलाएँ कल्याणमयी एवं विलक्षण हैं, जिनके अन्तरंग रहस्य को ब्रह्मा, शंकर सरीखे भी नहीं जान पाते। ‘श्री कृपालु जी’ के शब्दों में हम लोग उनके कार्यों में बाधक नहीं बनना चाहतीं, वे जो कुछ कर रहे हैं निस्सन्देह ठीक ही होगा।
(प्रेम रस मदिरा:-विरह–माधुरी)
-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।
-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।
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