हे श्यामसुन्दर ! थोड़ी सी हमारी भी प्रार्थना सुन लो। हम जो कुछ करते हैं उसको कामादिक महान् चोर क्षण भर में सब चुरा ले जाते हैं। जब हम दिव्य प्रेम की कामना करते हैं तब सांसारिक कामनाएं चित्त को चुरा ले जाती हैं। जब यह सोचता हूँ कि तुम्हारे चरण कमलों में ही ममता करूँगा तब स्त्री पुत्रादि मुझे अपनी ओर खींच ले जाते हैं। मैं जब यह सोचता हूँ कि मैं तो तुम्हारा सेवक हूँ तब दम्भ आकर अधिकार कर लेता है, अर्थात् पाखंड आकर रस में विष मिला देता है। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि अब मैं सभी प्रकार से हार गया। अतएव अपने कृपाकटाक्ष द्वारा बरबस मुझे अपना बना लो।
( प्रेम रस मदिरा:दैन्य-माधुरी )
---जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।
---जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।
No comments:
Post a Comment