तुम्हारा
Aim खाना नहीं है, तुम्हारा Aim आत्मा का जाे लक्ष्य है, आत्मा की जाे
खुराक है, आत्मा का जाे भाेज्य पदार्थ है वह है ,अर्थात् भगवत्प्राप्ति।
ताे इस बात का बार-बार जब चिन्तन करे काेई जीव।ये बीमारी लग जाय़ उसके
पीछे जैसे संसार में किसी काे प्यार की बीमारी लग जाती है,किसी लड़के काे
किसी लड़की की बीमारी लग गई या किसी दुश्मन से दुश्मनी की बीमारी लग गई ,
ताे उसका लगातार चिन्तन चलता रहता है जागते, बैठते, साेते हर समय हर
जगह।ऐसे अगर हर समय तुम्हारा चिन्तन प्रारम्भ हाे जाये कि मैं जीव हूँ, मैं
श्रीकृष्ण दास हूँ, मेरा असली रुप ये है,ये मेरा मानवदेह मुझे ईश्वर
प्राप्ति के लिये मिला है और फिर कल ये रहे न रहे,इसलिये आज करना है, अभी
करना है, तुरन्त करना है, ये निश्चय जब तक आप पक्का नही करेंगें,तब तक
अनन्त सन्त मिले,भगवान की गाेद में आप बैठे हैं - फिर भी काेई लाभ नहीं।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
----- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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