जिस
जीव के हृदय मे पश्चाताप है , वह परम उन्नति कर सकता है । परंतु जिसे अपने
बुरे कर्मों पर दुःख नहीं होता , जो अपनी गिरि दशा का अनुभव नहीं करता ,
जिसे समय के व्यर्थ बीत जाने का पश्चताप नहीं , वह चाहे कितना भी बड़ा
विद्वान हो , कैसा भी ज्ञानी हो , कितना भी विवेकी हो , वह उन्नति के शिखर
पर कभी नहीं पहुँच सकता । जहाँ पूर्वकृत कर्मों पर सच्चे हृदय से पश्चाताप
हुआ , जहां सर्वस्व त्याग कर श्री कृष्ण के चरणों मे जाने की इच्छा हुई ,
वहीं समझ लो उसकी उन्नति का श्री गणेश हो गया । वह शीघ्र ही अपने लक्ष्य को
प्राप्त कर लेगा।
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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