कामना एवं प्रेम....!!!
कामना ' प्रेम ' का विरोधी तत्व है । लेने - देने का नाम व्यापार है ।
जिसमें प्रेमास्पद से कुछ याचना की भावना हो , वह प्रेम नहीं है । जिसमें
सब कुछ देने पर भी तृप्ति न हो , वही प्रेम है । संसार में कोई व्यक्ति
किसी से इसलिये प्रेम नहीं कर सकता क्योंकि प्रत्येक जीव स्वार्थी है वह
आनन्द चाहता है , अस्तु लेने - लेने की भावना रखता है । जब दोनों पक्ष
लेने- लेने की घात में हैं तो मैत्री कितने क्षण चलेगी ? तभी तो स्त्री -
पति , बाप - बेटे में दिन में दस बार टक्कर हो जाती है । जहाँ दोनों लेने -
लेने के चक्कर में हैं , वहाँ टक्कर होना स्वाभाविक ही है और जहाँ टक्कर
हुई , वहीं वह नाटकीय स्वार्थजन्य प्रेम समाप्त हो जाता है । वास्तव में
कामनायुक्त प्रेम प्रतिक्षण घटमान होता है ,जबकि - दिव्य प्रेम प्रतिक्षण
वर्द्धमान होता है । कामना अन्धकार - स्वरुप है , प्रेम - प्रकाश स्वरुप है
।
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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