रँगीली राधा रसिकन प्रान |
सरस किशोरी की रसबोरी, भोरी मृदु मुसकान |
सुबरन बरन गौर तनु सुबरन, नील बरन परिधान |
कनकन मुकुट लटनि की लटकनि, भृकुटिन कुटिल कमान |
कनकन कंकन कनकन किंकिनि, कनकन कुंडल कान |
लखि लाजत श्रृंगार लाड़लिहिं, कहँ लौं करिय बखान |
होत ‘कृपालु’ निछावर जापर, सुंदर श्याम सुजान ||
सरस किशोरी की रसबोरी, भोरी मृदु मुसकान |
सुबरन बरन गौर तनु सुबरन, नील बरन परिधान |
कनकन मुकुट लटनि की लटकनि, भृकुटिन कुटिल कमान |
कनकन कंकन कनकन किंकिनि, कनकन कुंडल कान |
लखि लाजत श्रृंगार लाड़लिहिं, कहँ लौं करिय बखान |
होत ‘कृपालु’ निछावर जापर, सुंदर श्याम सुजान ||
भावार्थ – रंगीली राधा रसिकों को प्राण के समान प्रिय हैं | रसमयी
किशोरी जी की प्रेम रस से सरोबार भोली सी मुस्कान अत्यन्त ही मधुर है |
किशोरी जी की देह का रंग सुवर्ण के रंग के समान अत्यन्त सुन्दर है | वे
नीले रंग की साड़ी पहने हुए हैं | सुवर्ण के मुकुट, घुँघराले बालों की लटक
एवं धनुष के समान टेढ़ी भौहें नितांत कमनीय हैं | हाथ में सुवर्ण के कंकण,
कमर में सुवर्ण की किंकिणी एवं कानों में सुवर्ण के कुंडल मन को बरबस लुभा
रहे हैं | कहाँ तक कहें किशोरी जी की श्रृंगार माधुरी को देखकर स्वयं
श्रृंगार भी लज्जित हो रहा है | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि सबसे बड़ी बात
तो यह है कि त्रिभुवन मोहन मदन मोहन भी स्वयं किशोरी जी के हाथों बिना दाम
के बिके हुए हैं |
( प्रेम रस मदिरा श्रीराधा – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति
( प्रेम रस मदिरा श्रीराधा – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति
No comments:
Post a Comment