प्रत्येक
आत्मा श्यामसुन्दर का देह है। और जैसे आपका यह प्राकृत देह आपकी ही
अर्थात् आत्मा की ही सर्विस करता है, प्रतिक्षण आत्मा को सुख देने के लिये
ही संकल्प से लेकर क्रियायें तक करता है। उसी प्रकार श्यामसुन्दर का देह
अर्थात् आत्मा भी श्यामसुन्दर का नित्य किंकर है, किन्तु इस आत्मा ने
अनादिकाल से देह को आत्मा मान लिया अर्थात् आत्मा को देही नहीं माना, देह
मान लिया, इस भ्रम के कारण देह सम्बन्धी विषयों में अर्थात् संसार के
पदार्थों को विषय बनाकर, इन्द्रियों के सुखों में लिप्त हो गया और यह क्रम
अनन्तानन्त युगों से चला आ रहा है। अगर कभी सौभाग्य से कोई जीव स्व स्वरुप
को जान ले अर्थात् ' मैं ' को श्यामसुन्दर का नित्य किंकर रियलाइज करे,
विश्वासपूर्वक माने, तो फिर श्यामसुन्दर की प्राप्ति में कुछ भी देर
नहीं,कुछ भी साधना की अपेक्षा नहीं।
---- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।