Although
human body is invaluable, it is transient. Therefore to procrastinate
in devotional practise even for a moment is the greatest loss.
मानव देह अमूल्य होते हुये भी क्षणिक है अतः परमार्थ साधना में एक क्षण का भी उधार सबसे बडी हानी है।
........श्री महाराज जी।
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