संत संग सत्संग करू , तिन सेवहु दिन रात।
श्रद्धा , रति , अरु भक्ति सब , आपुहिं तेहि मिली जात।।५०।।
भावार्थ - किसी वास्तविक रसिक की शरण ग्रहणकर , उनका सतत सत्संग करते रहने से श्रद्धा , रति एवं भक्ति क्रमशः स्वयं प्राप्त हो जाती है।
श्रद्धा , रति , अरु भक्ति सब , आपुहिं तेहि मिली जात।।५०।।
भावार्थ - किसी वास्तविक रसिक की शरण ग्रहणकर , उनका सतत सत्संग करते रहने से श्रद्धा , रति एवं भक्ति क्रमशः स्वयं प्राप्त हो जाती है।
भक्ति शतक (दोहा - 50)
-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
(सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति)
-जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
(सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति)
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