बिनु हरि कृपा न पाई सक , ज्ञानिहुँ ब्रहम ज्ञान।
ब्रहम अकर्ता वेद कह , सोचहु मनहिँ सुजान।।४९।।
भावार्थ - बिना सगुण साकार भगवान् की कृपा के ज्ञानी को भी ब्रहमज्ञान नहीं हो सकता। क्योंकि ज्ञानियों का ब्रहम कुछ नहीं करता। फिर कृपा करने का तो प्रश्न ही नहीं है।
ब्रहम अकर्ता वेद कह , सोचहु मनहिँ सुजान।।४९।।
भावार्थ - बिना सगुण साकार भगवान् की कृपा के ज्ञानी को भी ब्रहमज्ञान नहीं हो सकता। क्योंकि ज्ञानियों का ब्रहम कुछ नहीं करता। फिर कृपा करने का तो प्रश्न ही नहीं है।
भक्ति शतक (दोहा - 49)
---जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
(सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति)
---जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
(सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति)
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