Saturday, August 24, 2013

' गु ' शब्द का अर्थ माया का अन्धकार , ' रु ' शब्द का अर्थ नाश करना है। अर्थात जो माया रूपी अन्धकार का नाश कर दे वही गुरु है।
.......श्री महाराज जी।
Receiving a mantra from the Guru, massaging his feet, offering him worldly objects or lavishing false praises on him does not constitute true surrender.

केवल कान फूंका लेने मात्र से अथवा गुरूजी के पैर दबाने मात्र से , अथवा गुरु जी को सांसारिक द्रव्य देने मात्र से ,अथवा बातें बनाने मात्र से ,शरणागति नहीं हो सकती !!
------ जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज.
गुरु मेटत अँधियार।
"Mind In 'God' And 'Body' In The World Is 'Karmyog' ; Whereas Bodily Worshipping God And Having Attachments In The World Is 'Absolute Ignorance'.
------JAGADGURU KRIPALUJI MAHARAJ."
"Service (seva) (physical or monetary) (tan se ya dhan se) is a token of your love and dedication at your master's feet which he accepts out of his kindness.If a rasik saint accepts your services,it is only his grace upon you.
------JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ."
हे जीव ! समस्त शास्त्रों का ज्ञान त्याग के एक ही ज्ञान ह्रदय में धारण कर ले कि श्रीहरि का सुख ही तेरा सुख है ।

----------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।
गुरु जो कहे,आज्ञा मानने का अर्थ है कि उसमे तुम बुद्धि मत लगाना।क्योंकि अगर तुमने बुद्धि लगाई ,सोचा फिर माना,तो तुम अपनी आज्ञा मान रहे हो,गुरु की आज्ञा नहीं।
..........श्री महाराजजी।
'इस जन्म में न हो, अगले जन्म में भगवान् को पाउँगा यह कैसी बात है? ऐसा ढीलाढाला सुस्त भाव नही रखना चाहिए! उनकी कृपा से उन्हें इसी जन्म में प्राप्त करूंगा - मन में इस तरह का जोर रखना चाहिए, विश्वास रखना चाहिए! इसके बिना नही होगा! ढीला ढाला भाव अच्छा नही! अपने में जोर लाकर, विश्वास के साथ कहो - ' उन्हें जरुर पाऊंगा, अभी इसी क्षण पाऊंगा!
..........श्री महाराजजी।
Every living being is incessantly searching for happiness. This search is natural to our being, since we are an eternal part of God, who is the ocean of Divine Bliss. The search for happiness is the search for God, except that is unknown to our mind and intellect. Hence, God-realization is the goal of our lives.
......Jagadguru Shree Kripalu ji Maharaj.
किसी वास्तविक रसिक की शरण ग्रहण कर , उनका सतत सत्संग करते रहने से श्रद्धा , रति एवं भक्ति क्रमशः स्वयं प्राप्त हो जाती है।
.......श्री महाराज जी।
PRECAUTIONS FOR A DEVOTEE:

■A devotee who progresses continuously in devotion, even while living in an unfavorable environment of Kusang is a true devotee.
■Until there is pride, devotional tears won't flow during Kirtan.
■Real Seva is when it is done silently.
■God graces the one who surrenders, God remains firm in this law of his.
■The foundation of Bhakti (Devotion) is Deenta (Humility). The one who wants to obtain lot of devotional benefit will have to become humble.
■Become like a little child. No matter what someone tells a child he does not feel it, he is always smiling.
...........SHRI MAHARAJJI.
हरि, और हरि के जन यानि महापुरुष, इन दोनों से छल-कपट नहीं चल सकता।
.........श्री महाराजजी।
अगर आपको पुरा विश्वास है कि भगवान सब के ह्रदय में बैठा है और सर्वान्तर्यामी है और उसको पता है आपको क्या चाहिये तो आप उनसे कुछ मांगोगे ही नहीं.

If you truely believe that God is with in heart of every soul and is all knowing, and he knows what you need ,then you would not ask him for anything.
.........JAGADGURU SHRI KRIAPLU JI MAHARAJ.
चाहे जैसी भी परिस्थिति हो सदैव गुरु के अनुकूल ही चिन्तन करो | प्रतिकूल परिस्थिति में भी अनुकूल चिन्तन बना रहे तभी समझो कि हमारी स्थिति ठीक है | चाहे कैसी भी कठिन सेवा हो या आज्ञा हो उसके पालन में प्राणपन से बलिहार जाना चाहिए |

............श्री महाराजजी !!!
सबसे ऊँची भक्ति भगवान् श्री कृष्ण की है ,किन्तु उससे भी ऊँची भक्ति गुरु की है।
---------श्री महाराज जी।
सूर्य के उदय होते ही प्रकाश पा कर वस्तुएँ दिखायी देने लगती हैं ! इसी प्रकार संत साधक को दिव्य द्रष्टि प्रदान कर हरि का प्रत्यक्ष दर्शन करा देते हैं !
............जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी.
We often wonder, “If God is omnipresent, why can’t we see Him?” The Ramayana says that although God is present in each and every particle of creation, yet He reveals Himself only to those who love Him. And it is impossible to love Him unless we spend some time thinking of Him.

So make God a part of your daily life. Do not turn to Him only in times of need. When you get used to thinking of Him as an eternal companion, you will find He is the best friend you have and the "one and only" you have been searching for all your life.
""जिस जीव का अंत:करण जितना पापयुक्त होगा, उसको उतनी ही मात्रा में संत के प्रति अश्रद्धा होगी। वो हर जगह बुद्धि लगायेगा और तर्क, वितर्क, कुतर्क, अतितर्क, संशय करेगा। जितना अधिक पाप होगा अंदर, उतना ही हम दूर जाते जाएंगे महापुरुष और भगवान से।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज.""
"These are the words of Guru, just accept them, then your aim will be achieved. We have to do devotion as per the order of Guru. Ved Vyas has suggested one more remedy – even if there is no faith, just have association of a true saint again and again".
--------- Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj.
साधक जब तक पूर्ण श्रद्धायुक्त नहीं होगा , वो ज्ञान का ग्रहण नहीं कर सकता। अगर पूर्ण श्रद्धा नहीं है, संशय है तो उसका सर्वनाश सुनिश्चित है। यानि वो संत पर दुर्भावना कर बैठेगा। यह बाबाजी कैसे हैं? कैसे हैं? सोचेगा, जैसा हम चाहते हैं, ऐसा बाबा होना चाहिये। हर आदमी इतना बड़ा मूर्ख है कि वो अपनी राय के अनुसार संत चाहता है।
"Do not spoil your idle time.In fact,we do not make good use of our spare time and that causes negative feelings of despair to set in.The best remedy of this problem is not to let your mind remain idle.Wherever you go,engage yourself in the thoughts of God.

------- Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj."
हरि एवं गुरु (श्री महाराजजी ही) 'ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही ही'(रट लो 'ही') हमारे हैं।शेष सब शरीर चलाने हेतु स्वार्थयुक्त हैं।ऐसा निश्चय बार-बार करते हुए बुद्धि में दृढ़ता लानी है।

************राधे-राधे************
ऐसा नहीं है की श्री महाराज जी के सानिध्य में रहने से केवल भगवत प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। श्री महराज जी के श्री चरणों में बैठने से, उनकी बताई हुई बातों का थोडा बहुत चिंतन मनन करने मात्र से जनम जनम के न जाने कितने कष्ट और डर दूर होने लगते हैं, निराशा, अवसाद और क्रोध समाप्त होने लगता है और मनुष्य में सकारात्मक ऊर्जा जन्म लेने लगती है।ये मेरा निजी अनुभव रहा है। कितना बड़ा सौभाग्य है हमारा की हम लोगो को श्री महाराज जी का प्यार मिला है।
"जो सुना है, वह याद हो गया"........यह तत्त्वज्ञान नहीं है।दृढ़ निश्चय ही तत्त्वज्ञान है।भगवान सर्वत्र हैं-----जिस समय ये फीलिंग दृढ़ हो जायेगी, तुरंत भगवतप्राप्ति हो जायेगी।
.......श्री महाराजजी।
संत ही सच्चा देवता है ! संत ही अपना है ! वही हमारा सच्चा हितैषी है।
..........श्री महाराज जी।
No one can really know God. He is not perceivable to the physical senses. Yet, many souls have attained Him. He has a very important quality of being causelessly merciful. It is only with His grace that the souls can know Him or attain Him. But, we have to do devotion to obtain this grace. Do not procrastinate, life is short and death can knock on our door any time.
परम प्रेमास्पद श्री कृष्ण तुम्हारे ही हैं. उन्हें थोडा भी दूर मत मानो. वे अपनी भुजाओ को पसारे तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे है. वे तुम्हारे आंसुओ को देख कर बड़े प्रसन्न होते है. यह भावना नहीं सत्य बता रहा हूँ. वैसे तो वे प्रतिक्षण प्रत्येक संकल्प को नोट करते है किन्तु आंसू उन्हें अधिकाधिक प्रिय है.

The ultimate loving Shree Krishna is yours only. Do not feel them a little far from you. They are waiting for you with their open arms to embrace you. When they are seeing at your tears they become extremely happy. This is not the feeling but telling truth. They make note of each and every idea of your mind but tears are most dear to them.
------- Jagadguru Shree Kripalu ji Maharaj.
O MY MASTER! Whoever is under the protection of your gracious hands,the powerful maya and the eternal bondage of attachments cease to hold their grip on that soul.

**************RADHEY-RADHEY****************
"Don't procrastinate starting spiritual practice; the human body is temporary and destructible."
............SHRI MAHARAJJI.
He who awakens you is the guru. You make every attempt to run away from the Guru because you feel comfortable in this sleep of ignorance and because awakening seems painful. On being woken up you rain abuses on the person who roused you. Sleep has become a habit with you. Someone has distributed the beautiful dreams that you were enjoying. Everything has become strange now. Now you shall have to get rid of all the old baggage. You shall have to start a new. But never forget that the guru is the only well- wisher that you have. Only the guru works ceaselessly for your welfare without an iota of self interest.
Sadguru is the embodiment of the immortal. In spite of your repeated treachery He makes repeated attempts to arouse you from your slumber of ignorance. You kept on telling Him, “Alright, I shall get up now.” But even after saying this you go back to your state of slumber. Your own effort alone will not suffice to break this sleep.
हम साधकों को सदा यही समझना चाहिए कि हमसे जो अच्छा काम हो रहा है, वह गुरु एवं भगवान की कृपा से ही हो रहा है क्योंकि हम तो अनादिकाल से मायाबद्ध घोर संसारी, घोर निकृष्ट, गंदे आइडियास(ideas) वाले बिलकुल गंदगी से भरे पड़े हैं। हमसे कोई अच्छा काम हो जाये, भगवान के लिए एक आँसू निकल जाय, महापुरुष के लिए, एक नाम निकल जाये मुख से, अच्छी भावना पैदा हो जाये उसके प्रति हमारी यह सब उनकी ही कृपा से हुआ ऐसा ही मानना चाहिये। अगर वे सिद्धान्त न बताते , हमको अपना प्यार न देते तो हमारी प्रवर्ति ही क्यों होती, कभी यह न सोचो की हमारा कमाल है, अन्यथा अहंकार पैदा होगा , अहंकार आया की दीनता गयी, दीनता गयी तो भक्ति का महल ढह गया। सारे दोष भर जाएंगे एक सेकंड में इसलिए कोई भी भगवत संबंधी कार्य हो जाये तो उसको यही समझना चाहिये कि गुरु कृपा है, उसी से हो रहा है ताकि अहंकार न होने पाये। अगर गुरु हमको न मिला होता, उसने हमको न समझाया होता ,उसने अपना प्यार दुलार न दिया होता, आत्मीयता न दी होती तो हम ईश्वर कि और प्रव्रत्त ही न होतें। अत: उन्ही की कृपा से सब अच्छे कार्य हो रहें है ऐसा सदा मान के चलो।
-----------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज.
Shri Krishna said:
Just fix your mind upon Me, the Supreme Personality of Godhead, and engage all your intelligence in Me. Thus you will live in Me always, without a doubt.
It is only by attaining God that the individual soul can be blissful and overcome material afflictions. There is no other way.
------SHRI MAHARAJ JI.
तुम लोगों के अन्दर मैं ऐसा बैठ गया हूँ कि तुम लोग कितना ही प्रयत्न करो , घूम फिर कर आओगे यहीं ! फिर बेकार चिन्तन क्यों करते हो ? अगर तुम कहो कि आप अन्दर बैठे हैं किन्तु दीखते तो नहीं ? बाहरी द्रष्टि में आना बहुत छोटी चीज है किन्तु अन्दर बैठ जाना बहुत बड़ी बात है ! यह आवश्यक नहीं है कि जो माँ अपने बच्चे को बहुत प्यार करती हो और उसे बच्चा प्रतिक्षण देखता हो ।
...........जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी।
"श्री महाराजजी के मुखारविंद से: तुम लोगो को मै कितना उठाता हूं पर तुम लोग नामापराध करके सब बराबर कर देते हो। मै तुम्हारे अपराधों को देखता हूं फिर भी तुम लोगो से कहने में डर लगता है। सोचता हू, अभी इतने चल रहे हो ,अगर कह दूँगा तो सत्संग भी छोड़ दोगे। मै माफ करना जानता हूँ,सोचता हू , कभी तो अक्ल आएगी तो ठीक हो जाओगे।"
एक भक्त की प्रभु से शिकायत कि तुम कितने निष्ठुर हो प्रभु......

नजरों में उनके हम,झूठे थे झूठे ही रहे। हमसे वो रूठे थे,रूठे ही रहे।
याद में उनकी हम,जलते व तड़पते ही रहे, अश्कवार नजरों से देखा गया न आलम कोई।
वो अपनी महफ़िल में मस्त थे मस्त ही रहे।।
सबहिं मानप्रद आपु अमानी।
सबको मान दो, स्वयं मान न चाहो,ऐसा होता है दीन।
आज्ञा सम न सुसाहिब सेवा।
सेवा का अभिप्राय है अपने स्वामी को सुख देने का लक्ष्य रखकर स्वामी की आज्ञानुसार सेवा करना। उनकी आज्ञापालन ही सेवा है,अपनी इच्छानुसार 'सेवा' सेवा नहीं।
हमारी अलबेली सरकार।
रसिक रँगीली गुन गर्वीली,रसिकन की रिझवार।।
DIVINE PICTURES OF PREM MANDIR IN VRINDAVAN DHAM.
Devotion is indispensable in all the paths. No righteous action or knowledge can lead to the attainment of God without devotio.
----SHRI MAHARAJ JI.
भगवान् और गुरु वैसे ही एक हैं जैसे पिता तथा माता का पति ! बोलने में अलग अलग शब्द हैं लेकिन अर्थ एक ही है !
--------जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी.
SHRI KRISHNA JANMASHTAMI - 28TH Aug,2013
@ PREM MANDIR, VRINDAVAN DHAM.

CELEBRATE SHRI KRISHNA JANMASHTAMI WITH JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHARAJ.ALL ARE INVITED.RADHEY-RADHEY.
प्रिया प्रियतम का रूपध्यान करते हुये उनके नाम ,रूप ,लीला , गुण ,धाम आदि का रो रो कर गायन करो ।
..........जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी ।
Divine words by- jagadguru shri kripalu ji maharaj.

After detaching the mind from the world and before surrendering to God, there is need of a God‐realised Saint or Guru, without whom one cannot attain the supreme goal.
If you do not shed tears while taking the name of God, it is because of pride. And if tears come and you start to feel proud of yourself, then that is not right. Only a Saint can detect such pride. It is important to be in close association with a Saint (Guru) so that this pride may not get a chance to flourish.
.........SHRI KRIPALU MAHAPRABHU JI.
भूल कर भी कभी महापुरुष एवं भगवान् के विरुद्ध न सोचो , अन्यथा नामापराध हो जायेगा।
*******श्री महाराज जी ********
Always feel the presence of your Guru and God with you as your protectors.
.......SHRI MAHARAJ JI.
गुरु करे उसे जिसे मिले श्याम श्यामा !
कान फुंक्वाने ते ना बने कभु कामा !!
श्याम श्यामा कहें गुरु भजो आठो यामा !
गुरु कहे आठो याम भजो श्याम श्यामा !!
----श्री महाराज जी।

Monday, August 19, 2013

आज नहीं कल कर लेंगे। बस ये कर लें,बस वो कर लें,फिर भजन करेंगे। इस प्रकार अनंत जन्म गँवा दिये लेकिन वह आज और कल न आ सका।
.......श्री महाराजजी।