श्री महाराजजी के श्रीमुख से :-
जब तक हम माया के अधीन हैं तब तक क्यों सोचते हो कि मैं प्रशंसा के योग्य हूँ। जब तक तुम शरणागत नहीं हुए तब तक तुम्हें अहंकार किस बात का? किसी भी जीव का वास्तविक स्वरूप श्रीकृष्ण दासत्व ही है। श्रीकृष्ण के दास बन जाओ फिर खूब अहंकार करो। हम छूट देते हैं। लेकिन उस समय तुम अहंकार कर ही नहीं सकते। भगवदप्राप्ति से पहले रहता है अहंकार। अत: सदा सावधान रहो।
जब तक हम माया के अधीन हैं तब तक क्यों सोचते हो कि मैं प्रशंसा के योग्य हूँ। जब तक तुम शरणागत नहीं हुए तब तक तुम्हें अहंकार किस बात का? किसी भी जीव का वास्तविक स्वरूप श्रीकृष्ण दासत्व ही है। श्रीकृष्ण के दास बन जाओ फिर खूब अहंकार करो। हम छूट देते हैं। लेकिन उस समय तुम अहंकार कर ही नहीं सकते। भगवदप्राप्ति से पहले रहता है अहंकार। अत: सदा सावधान रहो।
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