नृप दशरथ घर बजत बधाई।
सकल जगत को मात पिता जो,
सो कौशिल्यहिं मातु बनाई।
यह अचरज सुनि विधि हरि हर सुर,
जय जयकार करत रघुराई।देही भये विदेह अवध महँ,
पुनि विदेह देही पद पाई।
इंद्रिय मन बुधि भये राममय,
जड़ चेतन नहिँ परत लखाई।
राम कृपालु कृपा ते हौं हूँ,
आजु 'कृपालु' बधाई गाई।
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