कुछ लोग कहते हैं कि घड़ी अपने आप चलती है ऐसे ही सृष्टि भी अपने आप हो जायगी, किन्तु उन्हें सोचना चाहिये कि घड़ी पूर्व में नहीं चलती थी जब किसी ने उसे बनाया तब चलने लगी एवं पश्चात् भी नहीं चलेगी अर्थात् नष्ट हो जायगी, तब फिर बनानी पड़ेगी। इसके अतिरिक्त यह भी विचारणीय है कि घड़ी बनाने वाले ने घड़ी तो बनायी है किन्तु उस घड़ी के लौह परमाणुओं की क्रिया को घड़ी साज नहीं जानता अर्थात् उस पर कन्ट्रोल नहीं कर सकता। उसे कन्ट्रोल करने वाला ईश्वर है। अतएव ईश्वर को सर्वव्यापक होना पड़ता है अन्यथा वे परमाणु ठीक रूप से काम नहीं कर सकते।
प्रेम रस सिद्धान्त,
रचयिता- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
संस्करण 2010, अध्याय 1: जीव का चरम लक्ष्य, पृ. 17
प्रेम रस सिद्धान्त,
रचयिता- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
संस्करण 2010, अध्याय 1: जीव का चरम लक्ष्य, पृ. 17
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