Monday, April 8, 2013

किसी महापुरुष या साधक का अपमान करना भी घोर कुसंग है। साधकगण बहुधा अपने आपको तथा अपने महापुरुष को ही सत्य समझते हैं , शेष साधकों एवं महापुरुषों में दुर्भावना - पूर्ण निर्णय देते हैं । यह महान भूल है । इससे नामापराध हो जायेगा जिसके परिमाणस्वरूप अपना महापुरुष तथा अपना इष्टदेव भी प्रसन्न न हो सकेगा ;
क्योंकि समस्त महापुरुष तथा भगवान् परस्पर एक ही हैं।
.........(जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज).
किसी महापुरुष या साधक का अपमान करना भी घोर कुसंग है। साधकगण बहुधा अपने आपको तथा अपने महापुरुष को ही सत्य समझते हैं , शेष साधकों एवं महापुरुषों में दुर्भावना - पूर्ण निर्णय देते हैं । यह महान भूल है । इससे नामापराध हो जायेगा जिसके परिमाणस्वरूप अपना महापुरुष तथा अपना इष्टदेव भी प्रसन्न न हो सकेगा ; 
क्योंकि समस्त महापुरुष तथा भगवान् परस्पर एक ही हैं।
(जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज)

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