हरि ते मिलावे गुरु गोविंद राधे |
ऐसे गुरु ते ही तू मन को मिला दे ||
भावार्थ- गुरु वही है जो जीव को हरि से मिला दे | ऐसे सच्चे गुरु के प्रति जीव को अपने मन का पूर्ण समर्पण कर देना चाहिये |
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भावार्थ- गुरु वही है जो जीव को हरि से मिला दे | ऐसे सच्चे गुरु के प्रति जीव को अपने मन का पूर्ण समर्पण कर देना चाहिये |
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गुरु के प्रपन्न हो जा गोविंद राधे |
मन रूपी डोरी गुरु कर में थमा दे ||
भावार्थ- हे जीव ! गुरु की पूर्ण शरणागति ग्रहण कर | अपने मन की डोर को गुरुदेव के हाथों में सौंप दे |
पूर्ण प्रपन्न हो जा गोविंद राधे |
फिर हरि गुरु तेरा काम बना दें |
भावार्थ- जिस क्षण कोई भी जीव हरि गुरु के पूर्ण शरणागत हो जाता है वे तुरन्त ही उसकी माया निवृति कर देते हैं | वह जीव त्रिगुण, त्रिताप, त्रिकर्म, पंचक्लेश सबके बन्धन से मुक्त हो जाता है |
..................राधा गोविंद गीत ( जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ).
मन रूपी डोरी गुरु कर में थमा दे ||
भावार्थ- हे जीव ! गुरु की पूर्ण शरणागति ग्रहण कर | अपने मन की डोर को गुरुदेव के हाथों में सौंप दे |
पूर्ण प्रपन्न हो जा गोविंद राधे |
फिर हरि गुरु तेरा काम बना दें |
भावार्थ- जिस क्षण कोई भी जीव हरि गुरु के पूर्ण शरणागत हो जाता है वे तुरन्त ही उसकी माया निवृति कर देते हैं | वह जीव त्रिगुण, त्रिताप, त्रिकर्म, पंचक्लेश सबके बन्धन से मुक्त हो जाता है |
..................राधा गोविंद गीत ( जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ).
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