Thursday, April 11, 2013

साधना का पहला शत्रु है - अहंकार। जहाँ अहंकार आया , समझो दीनता खत्म। दीनता ख़त्म तो समझो कि साधना चौपट हो गयी। आपको उपासना भगवान् की ही करनी है। संसार में बस व्यवहार करना है। बाहर से आदर कीजिये , परन्तु अटैचमेंट न हो , लेकिन ईश्वरीय क्षेत्र में अनन्य प्रेम होना चाहिए।
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
साधना का पहला शत्रु है - अहंकार। जहाँ अहंकार आया , समझो दीनता खत्म। दीनता ख़त्म तो समझो कि साधना चौपट हो गयी। आपको उपासना भगवान् की ही करनी है। संसार में बस व्यवहार करना है। बाहर से आदर कीजिये , परन्तु अटैचमेंट न हो , लेकिन ईश्वरीय क्षेत्र में अनन्य प्रेम होना चाहिए।
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।


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