Saturday, March 30, 2013
If we worship Shri Krishna as a Supreme Almighty Personality, we will feel fear, hesitation and distance. This will become a hindrance in establishing a close relationship with Him. Rasika Saints have emphasised devotion to Lord Krishna through intimate relationships such as we have in the material world. These relationships of the devotee and God are known as bhavas. There are five bhavas: shanta, dasya, sakhya, vatsalya and madhurya. All the aspects of Love, i.e. God as our King, Master, Friend, Child and Beloved have been established in order to make us feel closer to God.
------jagadguru shri kripalu ji maharaj.
------jagadguru shri kripalu ji maharaj.
A devotee prays, “May there always be sorrow and suffering in my life, so that I may never forget God!” “Cursed be the happiness that makes me forget my Lord; blessed be the sorrows that make me remember Him.” Strive to become a true lover of God by not objecting to His will and by embracing His mysterious ways.
----JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
----JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.
Wednesday, March 27, 2013
If anyone were to again question why the actions of God are beyond our comprehension, then the precise answer is that He is all-knowing and we are ignorant. He is divine and we are material. He is unlimited and we are limited. He is all-powerful and we have very limited powers. He is the inspirer and we are inspired by Him. He is the illuminator and we are the illumined. He is the governor of maya and we are governed by maya. The implication is that God and His actions are totally beyond the comprehension of our material, defective and limited senses, mind and intellect. In the same way, the actions of Saints, who are united with God, are also beyond our comprehension. But at least we can understand the point that though they may be beyond our comprehension, all their actions are divine and solely performed for the welfare of others.
-------jagadguru shri kripalu ji maharaj.
-------jagadguru shri kripalu ji maharaj.
हरि भक्ति सर्वश्रेष्ठ गोविंद राधे |
वाते भी श्रेष्ठ गुरु भक्ति बता दे ||
भावार्थ- सबसे ऊँची भक्ति भगवान् श्रीकृष्ण की है, किन्तु उससे भी ऊँची भक्ति गुरु की है |
हरि कह ऊधो मेरी गोविंद राधे |
पूजा ते श्रेष्ठ गुरुपूजा बता दे ||
भावार्थ- भगवान् उद्धव से कहते हैं कि हे उद्धव ! मेरी पूजा से श्रेष्ठ गुरु की पूजा है |
गुरु पाछे हरि चले गोविंद राधे |
गुरु पदरज उड़ि पावन बना दे ||
भावार्थ- गुरु की चरण रज को प्राप्त करने के लिये हरि सदा गुरु के पीछे पीछे चलते हैं कि उनकी चरण रज मस्तक पर धारण करके मैं पवित्र हो जाऊँ |
..राधा गोविंद गीत ( जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ).
वाते भी श्रेष्ठ गुरु भक्ति बता दे ||
भावार्थ- सबसे ऊँची भक्ति भगवान् श्रीकृष्ण की है, किन्तु उससे भी ऊँची भक्ति गुरु की है |
हरि कह ऊधो मेरी गोविंद राधे |
पूजा ते श्रेष्ठ गुरुपूजा बता दे ||
भावार्थ- भगवान् उद्धव से कहते हैं कि हे उद्धव ! मेरी पूजा से श्रेष्ठ गुरु की पूजा है |
गुरु पाछे हरि चले गोविंद राधे |
गुरु पदरज उड़ि पावन बना दे ||
भावार्थ- गुरु की चरण रज को प्राप्त करने के लिये हरि सदा गुरु के पीछे पीछे चलते हैं कि उनकी चरण रज मस्तक पर धारण करके मैं पवित्र हो जाऊँ |
..राधा गोविंद गीत ( जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ).
You can never repay your Guru for what he has given you, because material treasures cannot pay for spiritual goods, yet the scriptures state emphatically that you must serve your Guru with body, mind and wealth. Your Guru is not stingy with the spiritual gifts he showers upon you, nor does He ever tire of giving you grace. Why do you think that you have served Him enough?
Be greedy in serving the Guru. The best disciple is he who renders service without the Guru asking for it.
........JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHAPRABHU.
Be greedy in serving the Guru. The best disciple is he who renders service without the Guru asking for it.
........JAGADGURU SHRI KRIPALUJI MAHAPRABHU.
मन को भरोसा दिलाओ आठु यामा। तेरे तो हैं परम हितेषी श्याम श्यामा।।
और द्वार जाओ न,अनन्य बनो बामा।त्रिगुण ,त्रिताप,त्रिकर्म,काटें श्यामा।।
भोरे बनि जाओ क्योंकि भोरी भारी श्यामा। भोरी भारी को प्रिय भोरा उरधामा।।
...
हरि-गुरु ते न कछु माँगो ब्रजबामा। दोनों ते सदा करो प्रेम निष्कामा।।
माँगना हो तो माँगो सेवा श्याम श्यामा। सेवा हित पुनि माँगो प्रेम निष्कामा।।
जल बिनु मीन ज्यों विकल कह बामा। वैसे मन व्याकुल हो जाये बिनु श्यामा।।
रहा नहीं जाये जब मिले बिनु श्यामा। तब जानो प्रेमबीज़,जामा उरधामा।।
--------जगद्गुरुत्तम श्री कृपालुजी महाराज द्वारा रचित।
और द्वार जाओ न,अनन्य बनो बामा।त्रिगुण ,त्रिताप,त्रिकर्म,काटें श्यामा।।
भोरे बनि जाओ क्योंकि भोरी भारी श्यामा। भोरी भारी को प्रिय भोरा उरधामा।।
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हरि-गुरु ते न कछु माँगो ब्रजबामा। दोनों ते सदा करो प्रेम निष्कामा।।
माँगना हो तो माँगो सेवा श्याम श्यामा। सेवा हित पुनि माँगो प्रेम निष्कामा।।
जल बिनु मीन ज्यों विकल कह बामा। वैसे मन व्याकुल हो जाये बिनु श्यामा।।
रहा नहीं जाये जब मिले बिनु श्यामा। तब जानो प्रेमबीज़,जामा उरधामा।।
--------जगद्गुरुत्तम श्री कृपालुजी महाराज द्वारा रचित।
Shri Radha is that Superior most personality for whom Vedas proclaim that they - 'The Vedas' cannot comprehend Her. Her foot dust is adored by the Supreme Lord Shri Krishn. The sovereign divine ladies Uma, Rama and Brahmani are the embodiment of just one power of Shri Radha. We offer millions of obeisances to that Supreme power known as Shri Radha.
Monday, March 25, 2013
आँसू बहाने से अन्तःकरण शुद्ध होगा, याद कर लो सब लोग, रट लो ये कृपालु का वाक्य। भोले बालक बनकर रोकर पुकारो, राम दौड़े आयेंगे। सब ज्ञान फेंक दो, कूड़ा-कबाड़ा जो इकट्ठा किया है। अपने को अकिंचन, निर्बल, असहाय, दींन हीन, पापात्मा रेअलाइज करो, भीतर से, तब आँसू की धार चलेगी, तब अन्तःकरण शुद्ध होगा, तब गुरु कृपा करेगा। गुरु की कृपा से राम के दर्शन होंगे, राम का प्यार मिलेगा और सदा के लिये आनन्दमय हो जाओगे।
Sunday, March 24, 2013
If someone continuously has association of a true Saint, continuously listens to Him, understands Him, then in a few days faith will arise on its own. And if there is faith, love will automatically come. If there is loving devotion – he would get real devotion and then finally fulfill his ultimate aim.
---------Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj.
---------Jagadguru Shree Kripaluji Maharaj.
If you do not shed tears while taking the name of God, it is because of pride. And if tears come and you start to feel proud of yourself, then that is not right. Only a Saint can detect such pride. It is important to be in close association with a Saint (Guru) so that this pride may not get a chance to flourish.
---------jagadguru shri kripalu ji maharaj.
---------jagadguru shri kripalu ji maharaj.
Friday, March 22, 2013
A pure devotee is never disturbed in any circumstances. Nor is he envious of anyone. Nor does a devotee become his enemy's enemy.
One who is not envious but is a kind friend to all living entities, who does not think himself a proprietor and is free from false ego, who is equal in both happiness and distress, who is tolerant, always satisfied, self-controlled, and engaged in devotional service with determination, his mind and intelligence fixed on Me—such a devotee of Mine is very dear to Me."
One who is not envious but is a kind friend to all living entities, who does not think himself a proprietor and is free from false ego, who is equal in both happiness and distress, who is tolerant, always satisfied, self-controlled, and engaged in devotional service with determination, his mind and intelligence fixed on Me—such a devotee of Mine is very dear to Me."
इकला ही आया जग गोविन्द राधे,
इकला ही काल तेरा टिकेट कटा दे।
केवल जो कर्म किया है, अच्छा या बुरा वह साथ जायेगा. तन,मन,धन इन का जो उपयोग चार एरिया में किया है- तामसी, राजसी,सात्विक, और भगवान, जिसने जिस एरिया में इन तीनो का उपयोग किया है, उसी एरिया में जाना होगा. हम नहीं जायेंगे नरक में ,बड़ा कष्ट होगा. अरे ! तो पहले क्यों नहीं सोचा. जब संतो ने कहा- अरे ! टाइम निकालो भगवान की भक्ति के लिये, इस शरीर को भगवान की और लगाओ, मन को लगाओ. तब आप लोगो ने कहा की गुरूजी तो ऐसी बाते करते है. हम तो गृहस्थी है, अपने बाल-बच्चों के लिये करेंगे. अब कहा है बाल बच्चे ? अकेले जाना पड़ेगा ! बाल-बच्चे कोई नहीं जायेंगे।
........जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।
इकला ही काल तेरा टिकेट कटा दे।
केवल जो कर्म किया है, अच्छा या बुरा वह साथ जायेगा. तन,मन,धन इन का जो उपयोग चार एरिया में किया है- तामसी, राजसी,सात्विक, और भगवान, जिसने जिस एरिया में इन तीनो का उपयोग किया है, उसी एरिया में जाना होगा. हम नहीं जायेंगे नरक में ,बड़ा कष्ट होगा. अरे ! तो पहले क्यों नहीं सोचा. जब संतो ने कहा- अरे ! टाइम निकालो भगवान की भक्ति के लिये, इस शरीर को भगवान की और लगाओ, मन को लगाओ. तब आप लोगो ने कहा की गुरूजी तो ऐसी बाते करते है. हम तो गृहस्थी है, अपने बाल-बच्चों के लिये करेंगे. अब कहा है बाल बच्चे ? अकेले जाना पड़ेगा ! बाल-बच्चे कोई नहीं जायेंगे।
........जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।
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