दीनता भीतर रहे , और बहार से एक्टिंग में क्रोध का व्यवहार भी करना होगा। संसार में हर तरह का व्यवहार करना होगा लेकिन भीतर गड़बड़ न हो। भीतर दीनता , सहनशीलता , नम्रता यही गुण रहें और बाहर से जैसा व्यवहार बाहर वाला करे उसी का जवाब देना चाहिए। अब एक बदमाश घर में घुसे और उससे तुम कह दो कि आप कैसे पधारे ? नहीं , उसकी चप्पल से पिटाई करो , लेकिन भीतर से गड़बड़ न करो। ये मतलब है ! दीनता , नम्रता और सारे गुण अंतःकरण में रहने चाहिये और संसार के व्यवहार में सब तरह का व्यवहार करना चाहिए। जैसा पात्र हो वैसा व्यवहार करो। बच्चे का सुधार करना है , उसको डाँटना है , गुस्से की एक्टिंग करो , गुस्सा न करो। भीतर गड़बड़ न करो , बाहर से गड़बड़ की एक्टिंग करो। इतने मर्डर किये अर्जुन ने , हनुमान जी ने , प्रह्लाद वगैरह ने , भीतर गड़बड़ नहीं हुआ बाहर से सब एक्टिंग हो रही है। पिक्चर में जैसे प्यार की एक्टिंग करते हैं , दुश्मनी की एक्टिंग करते हैं , मारधाड़ करते हैं , वैसे ही मुँह बनाते हैं। लेकिन भीतर नहीं। वो तो पैसा कमाने को एक्टिंग कर रहे हैं ऐसे ही हमको बाहर से व्यवहार करना है अनेक प्रकार का लेकिन भीतर नार्मल रहें।
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