#अनन्तानन्त #जन्मों में अनन्तानन्त स्त्री - पतियों से अनन्तानन्त बार जूते, लात, चप्पल खाकर भी उनसे #वैराग्य नहीं हुआ । #भगवत्सम्बन्धी बातें #पढते, #सुनते, मानते हुए भी #मन #हठ नहीं छोडता । तुम्हारी #कृपा के बिना #इन्द्रियों की #विषयासक्ति नहीं छुट सकती । अत: हे #कृपालु ! अपनी अकारण करुणा से मुझे अपना लो । ....... अत: हे #करुणासिन्धु, #दीनबन्धु, मेरे #श्रीकृष्ण ! तुम अपनी अकारण #करुणा का #स्वरुप प्रकट करते हुए मुझे अपना लो । मैं तो अनन्त जन्मों का #पापी हूँ किन्तु तुम तो #पतितपावन हो । यही #सोचकर तुम्हारे #द्वार पर आ गया ।
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