Tuesday, August 14, 2018

अरे मन! अस तृष्णा बलवान।
बड़े बड़े भूपति भये भूतल, उदय अस्त लौं भान।
तिनहुँन की सोइ दशा रही जो, एक भिखारिहिं जान।
यह तृष्णा नहिं छोड़ति इंद्रहुँ, जेहि सुरपति सब मान।
जब लौ नहिं सुमिरहु मन निशिदिन, सुंदर श्याम सुजान।
तब लौ सुख ‘कृपालु’ नहिं पैहौं, वेद पुरान प्रमान।।
भावार्थ:- अरे मन! यह तृष्णा इतनी बलवती है कि इस पृथ्वी पर बड़े-बड़े राजा हुए जिनका सम्पूर्ण धरातल पर राज्य था किंतु उनकी दशा भी ठीक एक भिखारी के समान थी। कहाँ तक कहें यह तृष्णा देवराज इन्द्र को भी नहीं छोड़ती जिसे सब देवताओं का स्वामी मानते हैं। ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं, हे मन! वेद पुराण चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं कि जब तक तू श्यामसुन्दर का निरन्तर स्मरण नहीं करेगा तब तक सुख न पा सकेगा।
(प्रेम रस मदिरा:-सिद्धान्त-माधुरी)
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित:-राधा गोविन्द समिति।

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